नई दिल्ली, 25 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि न्यायिक अधिकारी होने से किसी व्यक्ति के मौलिक, निजी और सामाजिक अधिकार खत्म नहीं हो जाते।
अदालत ने यह टिप्पणी उस व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए की जिस पर एक महिला को धोखा देने और एक वैवाहिक वेबसाइट पर मिले व्यक्ति से उसकी शादी कराने का आरोप था। महिला एक न्यायिक अधिकारी की बहन थी। जिससे शादी कराई जा रही थी वह पहले से ही शादीशुदा था।
अदालत ने कहा कि किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक न्यायिक अधिकारी को भी अपने परिवार के साथ खड़े रहने और उसकी देखभाल करने का अधिकार है। इसमें कहा गया है कि किसी न्यायिक अधिकारी या उसके परिवार को केवल उसकी पेशेवर भूमिका के कारण न्याय से वंचित करना अन्यायपूर्ण होगा।
आरोपी ने तर्क दिया था कि शिकायत इस बात को लेकर थी कि शिकायतकर्ता का भाई एक न्यायिक अधिकारी था। अदालत ने इस धारणा को खारिज करते हुए कहा कि एक न्यायिक अधिकारी की बहन को केवल उसके पारिवारिक संबंध के कारण न्याय या समान अवसरों से वंचित नहीं किया जा सकता।
अदालत ने न्यायिक अधिकारी की पहचान उजागर करने के आरोपी के प्रयास पर चिंता व्यक्त की और कहा कि समुदाय के अन्य सदस्यों की तरह न्यायाधीश भी अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं।
इसमें बिना सबूत के आधार पर न्यायिक प्रणाली में अनुचित रूप से हस्तक्षेप करने के प्रति आगाह किया गया।
अदालत ने निर्देश दिया कि यौन अपराधों से जुड़े मामलों में, फाइलिंग के पहले पन्ने के साथ वकील का एक प्रमाण पत्र होना चाहिए जो पुष्टि करता हो कि शिकायतकर्ता का नाम याचिका या अनुबंध के मुख्य भाग में उल्लेखित नहीं किया गया है।
यह निर्देश कानूनी कार्यवाही में यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की पहचान की रक्षा करने के उद्देश्य से मौजूदा निर्देशों के अनुरूप है।
–आईएएनएस
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