नई दिल्ली, 15 फरवरी (आईएएनएस)। भारत में लगभग 4.3 करोड़ महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस (गर्भाशय में होने वाली समस्या) से पीड़ित हैं। एक नए शोध में यह पता चला है।
एंडोमेट्रियोसिस एक दर्दनाक गर्भाशय में होने वाली समस्या है। यह 15 से 49 वर्ष की प्रजनन आयु के बीच की 10 प्रतिशत लड़कियों और महिलाओं को प्रभावित करती है।
विश्व स्तर पर यह स्थिति प्रजनन आयु में लगभग 19 करोड़ लड़कियों और महिलाओं को प्रभावित करती है।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, भारत के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रस्तुत एक शोध में कहा गया है कि कई अन्य पुरानी बीमारियों के विपरीत, विश्व स्तर पर और साथ ही भारत में सरकारों ने एंडोमेट्रियोसिस पर बहुत कम या बिल्कुल ध्यान नहीं दिया है।
उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि शोध के लिए फंडिंग बेहद अपर्याप्त है।
एंडोमेट्रियोसिस पर शोध का बढ़ता समूह मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों (एचआईसी) से है और भारत में इस स्थिति के साथ रहने वाली महिलाओं की वास्तविकता के बारे में बहुत कम जानकारी है।
एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाएं गंभीर और जीवन पर असर डालने वाले दर्द के साथ विविध और जटिल लक्षणों से पीड़ित होती हैं।
मासिक चक्र के दौरान शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण एंडोमेट्रियल जैसे ऊतक (टीशू) में कोशिकाएं बढ़ती हैं और फिर टूट जाती हैं और उन जगहों पर खून बहने लगता है।
जबकि मासिक धर्म के दौरान मासिक धर्म का रक्त शरीर से बाहर निकल जाता है, मगर इसमें यह रक्त अंदर ही रह जाता है, जिससे टीशू पैदा होते हैं। यह गंभीर पैल्विक (शरीर का वो हिस्सा है जिसमें ब्लैडर, यूटेरस, वजाइना और रेक्टम होते हैं) दर्द का कारण बन सकता है।
संस्थान में भारत के वैश्विक महिला स्वास्थ्य कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाली वरिष्ठ अनुसंधान फेलो डॉ. प्रीति राजवंशी ने कहा, ”मासिक धर्म के दर्द का सामान्य होना और एंडोमेट्रियोसिस पर जागरूकता की कमी से महिलाओं को इसके बारे में काफी देर से पता चलता है।”
उन्होंने कहा, “महिलाओं के स्वास्थ्य में एंडोमेट्रियोसिस एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में गायब है और हम इस क्षेत्र में नीतिगत सिफारिशों और अनुसंधान के व्यापक स्पेक्ट्रम के साथ आने की उम्मीद करते हैं।”
अध्ययन के लिए डॉ. प्रीति के नेतृत्व में एक टीम ने दिल्ली और असम की 18 वर्ष से अधिक आयु की 21 महिलाओं और 10 पुरुष भागीदारों का साक्षात्कार लिया, जिनमें लैप्रोस्कोपिक विधि से एंडोमेट्रियोसिस का पता लगाया गया था।
अध्ययन का उद्देश्य महिलाओं के एंडोमेट्रियोसिस के अनुभवों और उनके और उनके सहयोगियों के जीवन पर इसके प्रभाव का पता लगाना था।
निष्कर्ष महिलाओं और उनके पुरुष भागीदारों दोनों पर एंडोमेट्रियोसिस के गंभीर प्रभाव का सुझाव देते हैं और कैसे वे सामान्य जीवन जीने में चुनौतियों का सामना करते हैं।
यह महिलाओं और उनके पुरुष भागीदारों दोनों पर अलग-अलग तरीकों से प्रभाव डालता है, क्योंकि वे मनोवैज्ञानिक और कुछ मामलों में वित्तीय मुद्दों से जूझते हैं।
इससे पता चला कि इस बात पर समानताएं हैं कि यह स्थिति महिलाओं और उनके सहयोगियों के विभिन्न जीवन क्षेत्रों को कैसे प्रभावित करती है।
महिलाओं के जीवन पर एंडोमेट्रियोसिस के दीर्घकालिक प्रभाव को और समझने की जरूरत है।
शोधकर्ताओं ने एक समीक्षा पत्रिका में लिखा, “हमारे निष्कर्ष महिलाओं और उनके सहयोगियों के जीवन पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए एंडोमेट्रियोसिस के शीघ्र निदान और उपचार में सुधार की जरूरत पर प्रकाश डालते हैं।”
उन्होंने कहा, “भारतीय संदर्भ में, एक पुरानी स्थिति के रूप में एंडोमेट्रियोसिस के सामाजिक महत्व का पता लगाने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है, और सेवा वितरण में सुधार और महिलाओं के जीवन पर इस स्थिति के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है।”
भारतीय संदर्भ में एक पुरानी स्थिति के रूप में एंडोमेट्रियोसिस के सामाजिक महत्व का पता लगाने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है और सेवा वितरण में सुधार व महिलाओं के जीवन पर इस स्थिति के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर भी शोध की जरूरत है।
–आईएएनएस
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