नई दिल्ली, 24 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि पंजीकरण के रिन्युअल के लिए योगदान न दे सकने के कारण दिल्ली भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड द्वारा निर्माण श्रमिकों को लाभ से वंचित करना गलत है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि पंजीकरण रिन्यू करने के लिए नया योगदान देने की तारीख से एक वर्ष तक श्रमिक अधिनियम के तहत लाभ के पात्र रहेंगे।
अदालत ने कहा कि किसी भी न दिये गये योगदान की भरपाई निर्माण श्रमिक को मिलने वाले लाभों से की जाएगी।
यह फैसला निर्माण श्रम पर केंद्रीय विधान के लिए राष्ट्रीय अभियान समिति द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में आया है, जिसमें भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 के तहत श्रमिकों के पंजीकरण की स्थिति को वर्गीकृत करने के लिए बोर्ड की पद्धति को चुनौती दी गई थी।
पीठ ने कहा कि अधिनियम का उद्देश्य निर्माण श्रमिकों के कल्याण की रक्षा करना और उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और समग्र कल्याण सुनिश्चित करना है।
इसने दोहराया कि लाभ से इनकार करने वाली कोई भी व्याख्या विधायी मंशा और स्थापित कानूनी सिद्धांतों के विपरीत है।
लाभ के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए एक निर्माण श्रमिक को प्रति वर्ष न्यूनतम 90 दिनों के लिए भवन और निर्माण कार्य में लगे रहने की आवश्यकता के संबंध में बोर्ड के वकील से सहमत होते हुए, अदालत ने बोर्ड को सभी अस्वीकृत या लंबित आवेदनों पर अधिनियम की धारा 17 की व्याख्या के अनुरूप तुरंत पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
अंत में, अदालत ने रिट याचिका का निपटारा करते हुए प्रतिवादी-बोर्ड को अधिनियम की स्पष्ट व्याख्या का पालन करते हुए ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों तरह से सभी प्रासंगिक आवेदनों की फिर से जांच करने का निर्देश दिया।
आदेश की कॉपी शनिवार को हाईकोर्ट की साइट पर अपलोड की गई।
–आईएएनएस
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