सालीचौका देशबन्धु, मध्य प्रदेश किसान सभा गाडरवारा के महासचिव करनसिंह अहिरवार ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय आव्हान पर मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के सालीचौका एवं धरना स्थल पचामा में 9फरवरी को बजट की प्रतियां जलाकर विरोध प्रगट करेंगी। दरबारी कॉर्पोरेटों के इशारे पर अमीरों का बजट तैयार किया गया है ।
बजट में बदले की भावना से किसानों मजदूरों पर वार किया हैं श्री अहिरवार ने आरोप लगाया है कि
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश केन्द्रीय बजट 2023-24 ‘अमीरों’ का बजट है जिसे दरबारी कॉर्पोरेटों के इशारे पर बनाया गया है; यह किसानों, गरीबों व मेहनतकशों को हितों के खिलाफ है। इसमें कृषि व ग्रामीण विकास के लिए वास्तविक आवंटन के खोखलेपन को शब्दजाल से ढकने की कोशिश की गयी है। भाजपा सरकार स्वामीनाथन आयोग की सी2+50% की सिफारिश के अनुरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू नहीं किया है, न ही उसमें एम एम पी की वैज्ञानिक गारंटी पक्की की गई है जिससे किसानों का संकट बढ गया है। बजट में विकट स्थिति से निपटने के लिए कुछ नहीं किया गया है। भाजपा सरकार ऐतिहासिक किसान आंदोलन के हाथों खाई शर्मनाक मात का बदला किसानों से ले रही है जिसमें उसे के कॉर्पोरेटों पक्षधर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा था इस बजट में ग्रामीण रोजगार, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, उर्वरक सब्सिडी आदि खर्चो में बड़ी कटौती की गयी है।
यह बजट ऐसे समय आया है जब मंदी के चलते भारी अनिश्चितता छायी हुई है, जलवायु परिवर्तन के खतरों व अन्य चुनौतियों के साथ में यह बजट किसानों में विश्वास पैदा करने में असफल रहा है। किसानों व अन्य मेहनतकशों की आय बढ़ाने के लिए इसमें कुछ नहीं है। कृषि के वास्तविक बजट को 2022-23 के 1,24,000 करोड़ रुपये से घटाकर इस वर्ष के लिए 1,15,531.79 करोड़ रूपये कर दिया गया है। वास्तव में इस बजट में कृषि आवंटन में व्यापक कटौती की गयी है।
बजट में बहुप्रचारित प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पिछले वर्ष के मुकाबले कोई वृद्धि नहीं की गई है। इस मद में आवंटन 60,000 करोड़ रूपये है। यदि सरकार के लगभग 12 करोड़ लाभान्नितों के दावे को लें तो कम से कम 72,000 करोड़ रूपये आवंटित किये जाने चाहिये थे। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के मामले में भी जहाँ 2022-23 का बजट अनुमान 15,500 करोड़ रुपये था वहीं इस बजट में केवल 13,625 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। हरित क्रांति जिसे एक प्रमुख योजना कहकर प्रचारित किया गया था और 2021-22 में 6,747 करोड़ रूपये दिये गये थे उसके न तो पिछले बजट में और न ही इस बजट में कुछ दिया गया। उर्वरक सब्सिडी में भारी कटौती करते हुए 2022-23 के संशोधित अनुमान 2,25,000 करोड़ रुपये की तुलना में 1,75,000 करोड़ रुपये आवंटित कर 22 प्रतिशत यानी 50,000 करोड़ की कटौती की गई है। इससे उत्पादकता और खाद्यान्नों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा। बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बतायी गयी प्राकृतिक खेती इस वर्ष केवल 459 करोड़ के आवंटन के साथ हाशिये पर दिखायी पड़ी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के आवंटन में भारी कटौती कर आवंटन को 10,433 करोड़ से 7,150 करोड़ रुपये कर दिया गया है। प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना का आवंटन 2022-23 के बजट अनुमान 12,954 करोड़ रुपये से कम कर इस बजट में 10,787 करोड़ रूपये कर दिया है। मार्केट इंटरवेंशन एंड प्राइज सपोर्ट स्कीम जिसके लिए 2022-23 में के संशोधित अनुमानों में 1500 करोड़ रूपये दिये गये थे उसकी इस वर्ष चर्चा तक नहीं हुई।
ग्रामीण रोजगार के लिए 2022-23 के संशोधित अनुमान में 1,53,525.41 करोड़ रुपय रखे गए थे उसमें भारी, कटौती कर 2023-24 के बजट अनुमान में 1,01,474.51 करोड़ आवंटित किये गये हैं। मनरेगा के आवंटन में 2022-23 के बजट अनुमान 89,000 करोड़ रूपय के मुकाबले 2023-24 में मात्र 60,000 करोड रूपये आवंटित किये गये हैं। यह तब किया गया है जब अनुमान है कि सरकार यदि 100 दिन के रोजगार की वैधानिक गारंटी देना चाहती है तो इसके लिए 2.72 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। बजटीय आवंटन, सरकार के अपने आर्थिक सर्वे का निरादर करता हैं जो दिखाता है कि ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत माँग महामारी के पहले के समय से ज्यादा है इससे ग्रामीण क्षेत्र में संकट का पता चलता है। इस अहम योजना के लिए जरूरत से कहीं कम आवंटन के चलते देरी से भुगतान और काम रुकने की रपटे राज्यों से बराबर आती रही हैं। इससे रोजगार के दिन और कम हो जाते हैं। इस वर्ष का बजट देश के ग्रामीण, गरीबों के प्रति सरकार की बेरुखी को दिखाता है। आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना का आवंटन भी 5758 करोड़ से घटाकर 2273 करोड़ कर दिया गया है। हर वर्ष 2 करोड़ रोजगार पैदा करने की बातों को कितनी आसानी से भुला दिया गया है।
सबसे बड़ी गिरावट खाद्य सब्सिडी में की गयी है जिसे 2022-23 के संशोधित अनुमान 2,87,194 करोड़ रूपये से घटाकर 2023-24 के बजट अनुमानों में1,97,350 करोड़ कर दिया है, 31 प्रतिशत की कटौती महामाही के समय अतिरिक्त खाद्यान्न योजना के बदले प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त राशन वितरण आंखों में धूल झोंकने वाला है। मंशा यह है कि खाद्य सुरक्षा सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर खर्चा कम करना है। इसका सीधा असर व खाद्यान्नों की खरीद पर पड़ेगा। नेशनल फूड सेक्युरिट एक्ट के तहत खाद्यान्नों की विकेन्द्रीकृत खरीद के लिए आवंटन की 2022-23 के संशोधित अनुमानों 72,282.50 करोड़ से कम कर इस वर्ष 59,793.00 करोड़ कर दिया गया है। यह 12500 करोड़ या 17 प्रतिशत कम हैं। भारतीय खाद्य निगम के लिए ‘खाद्य सब्सिडी में 8,713 करोड़ की बड़ी कटौती कर 1,45,920 करोड़ से 1,37,207 करोड़ कर दिया गया है। ये कदम केवल किसानों की दृष्टि से ही चिंतित करने वाले नहीं हैं बल्कि मुद्रास्फीति के रुझानों को देखते हुए भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए चिंता पैदा करने वाले हैं।
बजट में कोऑपरेटिवस को केन्द्रीकृत कर केन्द्र सरकार के नियन्त्रण में ले आने की कोशिशों का भी पता चलता है। यह संघीय व्यवस्था में राज्यों के हकों के खिलाफ है। एग्रीकल्चर एक्सेलेटर फंड बनाकर एग्री स्टार्टअप को बढ़ावा देना, कोल्डस्टोरेज को विकेन्द्रीकृत करना आदि नियमित बयानबाजी का हिस्सा है। इसका भी वहीं हश्र होगा जो एग्रीकल्चर ईग्रास्ट्रक्चर फीड का हुआ, जिसे बड़े शोर-शराबे के साथ घोषित किया गया था; इसके लिए 2022-23 में 500 करोड़ आवंटित किये गये थे, जिन्हें संशोधित अनुमानों के 150 करोड़ कर दिया गया। कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की बात भी किसानों की बजाय कॉर्पोरेट कंपनियों को लाभ पहुँचाने के लिए है।
अमृतकाल की तमाम बातें खोखली हैं और भारत के अन्नदाताओं को, मेहनतकशों व गरीबों को कोई राहत प्रदान नहीं की गयी है।
इस सरकार के अंतिम पूर्ण बजट में ऐसा कुछ नहीं है जो इसकी जन विरोधी, किसान विरोधी व मजदूर विरोधी नीतियों से इसे अलग का सके। यह बजट सरकार के मजदूर किसान एवम आम जनता विरोधी इसके चरित्र को और मजबूत करता है। बजट में जनता को स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक सुरक्षा के मामले में कोई राहत नहीं दी गई है। अल्पसंख्यकों के विकास के कार्यक्रमों के लिए आवंटन को 1810 करोड़ से घटाकर 1200 करोड़ करने, यानी 610 करोड़ की कटौती करने से इस सरकार का सांप्रदायिक चरित्र बेनकाब हुआ है।
अखिल भारतीय किसान सभा अपनी सभी इकाईयों से इस किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, कॉर्पोरेट पक्षधर बजट का किसानों-मजदूरो को एकजुट करते हुए बजट की प्रतियां जलाते हुए विरोध करने का आहवान करते हैं।