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साइकोलॉजी एक्सपर्ट्स ने कहा, बच्‍चों को सोशल मीडिया से दूर करने में मदद करें पेरेंट्स

by
April 21, 2024
in राष्ट्रीय
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साइकोलॉजी एक्सपर्ट्स ने कहा, बच्‍चों को सोशल मीडिया से दूर करने में मदद करें पेरेंट्स
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लखनऊ, 21 अप्रैल (आईएएनएस)। सोशल मीडिया के लिए रील बनाते समय पानी की टंकी में गिरने से 19 वर्षीय शिवांश की मौत के बाद मनोविज्ञान विशेषज्ञों ने माता-पिता से स्कूलों के साथ समन्वय बनाकर काम करने को कहा है, क्‍योंकि युवा अपनी जान जोखिम में डालकर भी सोशल मीडिया पर पहचान बनाने को लेकर क्रेजी हैं।

क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

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उन्‍होंने कहा, ”तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में युवा पहचान और अपनेपन की तालाश में सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि अनोखी चीजें करने से वे लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगे। ऐसे में उन्‍हें इसकी लत लग जाती है। इससे वे लगातार लोगों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दूसरों से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं।”

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने कहा, ”सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे और आत्महत्या की भावना रखने वाले पांच से छह युवा मरीज रोजाना मेरे पास आते हैं। वे जोखिम भरा कंटेंट बनाते हैं, जिसेे लोग देखना चाहते हैंं।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया एक लत की तरह मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाता है।

इन सब चीजों से बाहर आने के लिए प्रोफेसर भटनागर ने सुझाव दिया है कि माता-पिता को इन सब चीजों का ध्‍यान रखना चाहिए कि उनके बच्‍चे इंटरनेट को बहुत गंभीरता से न लें। स्‍कूलों में भी इसको लेकर समूह चर्चा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्‍हें उन जोखिम भरेे कामों से बचाया जा सकेे।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने किशोरों को सोशल मीडिया के साथ स्मार्टफोन न देने की भी वकालत की है।

उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

लगभग सभी टॉपर्स ने कहा कि वे सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने के बजाय किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

–आईएएनएस

एमकेएस/सीबीटी

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लखनऊ, 21 अप्रैल (आईएएनएस)। सोशल मीडिया के लिए रील बनाते समय पानी की टंकी में गिरने से 19 वर्षीय शिवांश की मौत के बाद मनोविज्ञान विशेषज्ञों ने माता-पिता से स्कूलों के साथ समन्वय बनाकर काम करने को कहा है, क्‍योंकि युवा अपनी जान जोखिम में डालकर भी सोशल मीडिया पर पहचान बनाने को लेकर क्रेजी हैं।

क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

उन्‍होंने कहा, ”तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में युवा पहचान और अपनेपन की तालाश में सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि अनोखी चीजें करने से वे लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगे। ऐसे में उन्‍हें इसकी लत लग जाती है। इससे वे लगातार लोगों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दूसरों से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं।”

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने कहा, ”सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे और आत्महत्या की भावना रखने वाले पांच से छह युवा मरीज रोजाना मेरे पास आते हैं। वे जोखिम भरा कंटेंट बनाते हैं, जिसेे लोग देखना चाहते हैंं।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया एक लत की तरह मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाता है।

इन सब चीजों से बाहर आने के लिए प्रोफेसर भटनागर ने सुझाव दिया है कि माता-पिता को इन सब चीजों का ध्‍यान रखना चाहिए कि उनके बच्‍चे इंटरनेट को बहुत गंभीरता से न लें। स्‍कूलों में भी इसको लेकर समूह चर्चा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्‍हें उन जोखिम भरेे कामों से बचाया जा सकेे।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने किशोरों को सोशल मीडिया के साथ स्मार्टफोन न देने की भी वकालत की है।

उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

लगभग सभी टॉपर्स ने कहा कि वे सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने के बजाय किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 21 अप्रैल (आईएएनएस)। सोशल मीडिया के लिए रील बनाते समय पानी की टंकी में गिरने से 19 वर्षीय शिवांश की मौत के बाद मनोविज्ञान विशेषज्ञों ने माता-पिता से स्कूलों के साथ समन्वय बनाकर काम करने को कहा है, क्‍योंकि युवा अपनी जान जोखिम में डालकर भी सोशल मीडिया पर पहचान बनाने को लेकर क्रेजी हैं।

क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

उन्‍होंने कहा, ”तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में युवा पहचान और अपनेपन की तालाश में सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि अनोखी चीजें करने से वे लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगे। ऐसे में उन्‍हें इसकी लत लग जाती है। इससे वे लगातार लोगों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दूसरों से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं।”

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने कहा, ”सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे और आत्महत्या की भावना रखने वाले पांच से छह युवा मरीज रोजाना मेरे पास आते हैं। वे जोखिम भरा कंटेंट बनाते हैं, जिसेे लोग देखना चाहते हैंं।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया एक लत की तरह मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाता है।

इन सब चीजों से बाहर आने के लिए प्रोफेसर भटनागर ने सुझाव दिया है कि माता-पिता को इन सब चीजों का ध्‍यान रखना चाहिए कि उनके बच्‍चे इंटरनेट को बहुत गंभीरता से न लें। स्‍कूलों में भी इसको लेकर समूह चर्चा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्‍हें उन जोखिम भरेे कामों से बचाया जा सकेे।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने किशोरों को सोशल मीडिया के साथ स्मार्टफोन न देने की भी वकालत की है।

उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

लगभग सभी टॉपर्स ने कहा कि वे सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने के बजाय किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

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क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

उन्‍होंने कहा, ”तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में युवा पहचान और अपनेपन की तालाश में सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि अनोखी चीजें करने से वे लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगे। ऐसे में उन्‍हें इसकी लत लग जाती है। इससे वे लगातार लोगों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दूसरों से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं।”

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने कहा, ”सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे और आत्महत्या की भावना रखने वाले पांच से छह युवा मरीज रोजाना मेरे पास आते हैं। वे जोखिम भरा कंटेंट बनाते हैं, जिसेे लोग देखना चाहते हैंं।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया एक लत की तरह मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाता है।

इन सब चीजों से बाहर आने के लिए प्रोफेसर भटनागर ने सुझाव दिया है कि माता-पिता को इन सब चीजों का ध्‍यान रखना चाहिए कि उनके बच्‍चे इंटरनेट को बहुत गंभीरता से न लें। स्‍कूलों में भी इसको लेकर समूह चर्चा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्‍हें उन जोखिम भरेे कामों से बचाया जा सकेे।

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एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

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क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

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प्रोफेसर त्रिपाठी ने किशोरों को सोशल मीडिया के साथ स्मार्टफोन न देने की भी वकालत की है।

उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

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क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

उन्‍होंने कहा, ”तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में युवा पहचान और अपनेपन की तालाश में सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि अनोखी चीजें करने से वे लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगे। ऐसे में उन्‍हें इसकी लत लग जाती है। इससे वे लगातार लोगों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दूसरों से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं।”

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने कहा, ”सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे और आत्महत्या की भावना रखने वाले पांच से छह युवा मरीज रोजाना मेरे पास आते हैं। वे जोखिम भरा कंटेंट बनाते हैं, जिसेे लोग देखना चाहते हैंं।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया एक लत की तरह मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाता है।

इन सब चीजों से बाहर आने के लिए प्रोफेसर भटनागर ने सुझाव दिया है कि माता-पिता को इन सब चीजों का ध्‍यान रखना चाहिए कि उनके बच्‍चे इंटरनेट को बहुत गंभीरता से न लें। स्‍कूलों में भी इसको लेकर समूह चर्चा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्‍हें उन जोखिम भरेे कामों से बचाया जा सकेे।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने किशोरों को सोशल मीडिया के साथ स्मार्टफोन न देने की भी वकालत की है।

उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

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क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर पल्लवी भटनागर ने कहा कि युवा केवल ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, चाहे भले ही इसके लिए उन्हें रिश्ता खोना पड़े।

उन्‍होंने कहा, ”तेजी से बदलती दुनिया में रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में युवा पहचान और अपनेपन की तालाश में सोशल मीडिया की ओर रुख करते हैं। उन्हें लगता है कि अनोखी चीजें करने से वे लोगों का ध्यान आकर्षित करेंगे। ऐसे में उन्‍हें इसकी लत लग जाती है। इससे वे लगातार लोगों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए दूसरों से आगे निकलने की होड़ में लग जाते हैं।”

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने कहा, ”सोशल मीडिया की लत से जूझ रहे और आत्महत्या की भावना रखने वाले पांच से छह युवा मरीज रोजाना मेरे पास आते हैं। वे जोखिम भरा कंटेंट बनाते हैं, जिसेे लोग देखना चाहते हैंं।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया एक लत की तरह मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाता है।

इन सब चीजों से बाहर आने के लिए प्रोफेसर भटनागर ने सुझाव दिया है कि माता-पिता को इन सब चीजों का ध्‍यान रखना चाहिए कि उनके बच्‍चे इंटरनेट को बहुत गंभीरता से न लें। स्‍कूलों में भी इसको लेकर समूह चर्चा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि उन्‍हें उन जोखिम भरेे कामों से बचाया जा सकेे।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने किशोरों को सोशल मीडिया के साथ स्मार्टफोन न देने की भी वकालत की है।

उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

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उन्होंने कहा, “आउटडोर खेल खेलने से रील बनाने या उसे देखने की इच्छा को कम करने में मदद मिल सकती है।”

एक ऑब्जर्वेशन में यह बात सामने आई है कि यूपी बोर्ड के सभी शीर्ष स्कोरर सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

टॉपर्स ने कहा कि बोर्ड की तैयारी दैनिक रिवीजन के बिना अधूरी है और इंटरनेट व कोचिंग कक्षाओं के पीछे भागने के बजाय कक्षा की पढ़ाई पर भरोसा करना चाहिए।

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