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10 के दम में फंसा झंझारपुर, त्रिकोणात्मक संघर्ष में महागठबंधन की राह मुश्किल

by
April 29, 2024
in राष्ट्रीय
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10 के दम में फंसा झंझारपुर, त्रिकोणात्मक संघर्ष में महागठबंधन की राह मुश्किल
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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

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इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

–आईएएनएस

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लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

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लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

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लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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मधुबनी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलने वाले बिहार में मधुबनी के झंझारपुर में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर खूब चर्चा है। झंझारपुर से चुनावी मैदान में उतरे 10 प्रत्याशी अपनी बढ़त बनाने को लेकर इस गर्मी में पसीना बहा रहे हैं। वहीं संबंधित पार्टियां भी पूरा जोर लगाए हुए है।

लोग भी चुनाव के समीकरण के जोड़ घटाव की चर्चा कर रहे हैं। कोसी, कमला सहित कई नदियों से घिरे इस संसदीय क्षेत्र में कुल 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू ने एक बार फिर रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी के सुमन कुमार महासेठ चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी ने गुलाब यादव को चुनावी अखाड़े में उतारकर सभी दलों की रणनीति को गड़बड़ा दिया है।

पिछले चुनाव में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र से जदयू के रामप्रीत मंडल ने 6 लाख से अधिक मत हासिल कर राजद के प्रत्याशी गुलाब यादव को करीब तीन लाख मतों से हराया था। इस चुनाव में जब महागठबंधन से यह सीट विकासशील इंसान पार्टी के हिस्से चली गयी, तो गुलाब यादव पिछली हार का बदला लेने बसपा में जा पहुंचे और यहां की लड़ाई को त्रिकोणात्मक बना दिया।

मिथिलांचल के झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र की चुनावी राजनीति मिथिला के अन्य जिलों से अलग मानी जाती है। यहां की सियासत पिछड़ा और अति पिछड़ा के समीकरण के ईद-गिर्द घूमती रही है। इसी वजह से माना जाता है कि सियासी रणनीति इसी समीकरण के हिसाब से तय किये जाते हैं।

यहां मतदाताओं ने करीब सभी मुख्य दलों को मौका दिया है। पहले यह क्षेत्र मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता था। 1972 में झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1972 में गठन के बाद पहली बार यहां से जगन्नाथ मिश्र सांसद बने। उसके बाद से इस क्षेत्र का अधिकांश बार नेतृत्व पिछड़े या अति पिछड़े समाज के लोग ही करते रहे हैं।

यहां कुल मतदाताओं की संख्या 19.86 लाख के करीब है। खजौली, बाबूबरही, राजनगर, झंझारपुर, फुलपरास और लौकहा विधानसभा क्षेत्र वाले इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों की टीस झंझारपुर को जिले का दर्जा देने को है। इस क्षेत्र के लोग पांच दशक से झंझारपुर को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। फुलपरास को झंझारपुर से अलग कर अनुमंडल बना दिया गया। आरोप लगे कि झंझारपुर के बदले फुलपरास को जिला बनाने की साजिश है। इसका भारी विरोध हुआ।

झंझारपुर सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके फुलपरास निवासी देवेंद्र यादव इस बार मौका नहीं मिलने पर नाराज हैं।

इधर, जदयू और महागठबंधन के नेताओं से बातचीत से स्पष्ट है कि जदयू के प्रत्याशी मंडल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के वोट बैंक पर सवार अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में हैं।

हालांकि महागठबंधन के गणित को झंझारपुर से विधायक रहे गुलाब यादव ने मैदान में उतरकर गड़बड़ा दिया है।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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