नई दिल्ली, 13 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को को-लोकेशन घोटाला मामले में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व प्रबंध निदेशक चित्रा रामकृष्ण को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की अपील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, हमें जमानत आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला। उन्होंने कहा कि कानून के सभी सवालों को खुला छोड़ दिया गया है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के आदेश में की गई टिप्पणियों को केवल डिफॉल्ट जमानत के लिए माना जाएगा और मुकदमे की योग्यता को प्रभावित नहीं करेगा।
सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश पूरी तरह से गलत है और डिफॉल्ट जमानत पर कानून बहुत स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि अगर गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो जमानत दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय ने 9 फरवरी को कर्मचारियों के कथित अवैध फोन टैपिंग से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में चित्रा रामकृष्ण को यह कहते हुए जमानत दे दी कि प्रथम दृष्टया यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह दोषी नहीं हैं।
सीबीआई ने पिछले साल मार्च में चित्रा को गिरफ्तार किया था और उच्च न्यायालय ने पिछले साल 28 सितंबर को को-लोकेशन मामले में उन्हें जमानत दे दी थी। ईडी मामले में उन्हें पिछले साल 14 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था।
उच्च न्यायालय ने 9 फरवरी को कहा था : प्रथम दृष्टया यह मानने के उचित आधार हैं कि आवेदक अपराध की दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले साल सितंबर में 2009 और 2017 के बीच एनएसई कर्मचारियों के फोन टैपिंग से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के मामले में राउज एवेन्यू कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी।
चार्जशीट दाखिल होने के बाद चित्रा रामकृष्ण, पूर्ववर्ती रवि नारायण और मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त संजय पांडे लगभग सात महीने तक हिरासत में रहे।
सीबीआई के मामले में पहले से ही जमानत पर चल रहीं चित्रा को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो मुचलके और जांच में शामिल होने और देश छोड़कर नहीं जाने जैसी कुछ शर्तो पर जमानत दी गई।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा : ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आवेदक ने अपराध की कोई संपत्ति या आय अर्जित की है या प्राप्त की है। उसने अपराध की किसी भी आय का इस्तेमाल बेदाग संपत्ति के रूप में नहीं किया।
–आईएएनएस
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