deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है : केरल उच्च न्यायालय

by
June 27, 2024
in ताज़ा समाचार
0
कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है : केरल उच्च न्यायालय
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

READ ALSO

राहुल गांधी के दौरे से नहीं पड़ेगा फर्क, बिहार की जनता एनडीए के साथ : संगीता कुमारी

मिर्जापुर के राजकुमार मिश्रा ने रचा इतिहास, ब्रिटेन के वेलिंगब्रो टाउन के बने मेयर

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

ADVERTISEMENT

कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

Related Posts

ताज़ा समाचार

राहुल गांधी के दौरे से नहीं पड़ेगा फर्क, बिहार की जनता एनडीए के साथ : संगीता कुमारी

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

मिर्जापुर के राजकुमार मिश्रा ने रचा इतिहास, ब्रिटेन के वेलिंगब्रो टाउन के बने मेयर

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

‘सेना और महिलाओं का अपमान बर्दाश्त नहीं’, इरफान अंसारी का भाजपा पर हमला

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

फूले फिल्म समाज का आईना है और संघर्ष की गाथा: वर्षा गायकवाड

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

गौतमबुद्ध नगर डीएम ने बिल्डर्स को दिए कड़े निर्देश, 31 मई तक कराएं बकाया फ्लैटों की रजिस्ट्री

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

राहुल गांधी ‘नाटक’ करने में बहुत तेज हैं: रविशंकर प्रसाद

May 16, 2025
Next Post

भारतीय अर्थव्यवस्था, बैंकिंग तंत्र बेहद मजबूत : आरबीआई

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

February 12, 2023
बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

February 12, 2023
चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

February 12, 2023

बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाढ़ जैसे हालात, शहर में घुसने लगा नदी का पानी

August 26, 2023
राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

May 5, 2024

EDITOR'S PICK

दिलजीत दोसांझ ‘बॉर्डर 2’ के लिए सनी देओल व वरुण धवन के साथ शामिल

September 6, 2024
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 2 न्यायिक अधिकारियों की दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति की सिफारिश की

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 2 न्यायिक अधिकारियों की दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति की सिफारिश की

October 11, 2023

‘फैन बॉय मोमेंट’: शतरंज के दिग्गज विश्वनाथन आनंद के साथ अश्विन ने शेयर की फोटो

November 10, 2024
चेन्नई ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी चुनी

चेन्नई ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी चुनी

May 14, 2023
ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

081386
Total views : 5874662
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In