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केंद्र ने फार्मा और मेडटेक सेंटर बनाने के लिए आवंटित किए 700 करोड़ रुपये

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June 28, 2024
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नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने देश में फार्मा और चिकित्सा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो पांच साल में दिए जाएंगे।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

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वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

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नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने देश में फार्मा और चिकित्सा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो पांच साल में दिए जाएंगे।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

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नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने देश में फार्मा और चिकित्सा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो पांच साल में दिए जाएंगे।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने देश में फार्मा और चिकित्सा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो पांच साल में दिए जाएंगे।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने देश में फार्मा और चिकित्सा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो पांच साल में दिए जाएंगे।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 28 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने देश में फार्मा और चिकित्सा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो पांच साल में दिए जाएंगे।

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

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रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, 700 करोड़ रुपये में से 243 करोड़ रुपये की राशि 2024-25 के लिए स्वीकृत की गई है।

वर्तमान में सात राज्यों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर (एनआईपीईआर) हैं जो मोहाली (पंजाब), अहमदाबाद (गुजरात), हाजीपुर (बिहार), हैदराबाद (तेलंगाना), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), गुवाहाटी (असम) और रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

एनआईपीईआर विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा उपकरण विनिर्माण, थोक दवा अनुसंधान एवं विकास, फाइटो फार्मास्युटिकल, जैविक चिकित्सा विज्ञान, तथा एंटीवायरल और जीवाणुरोधी दवा की खोज और विकास के साथ अनुसंधान पर फोकस करेंगे।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023 में 2027-28 तक पांच वर्षों के लिए 5,000 करोड़ रुपये के खर्च के साथ फार्मा मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की योजना को मंजूरी दी थी।

2023 में एक संसदीय पैनल ने फिर से सिफारिश की कि सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण शिक्षा और अनुसंधान संस्थान और फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान एवं विकास और नवाचार परिषद की स्थापना जैसी नई पहलों के लिए अधिक धन आवंटित करे।

यह बताया गया था कि डीओपी ने वित्त वर्ष 24 के लिए 1,286 करोड़ रुपये मांगे थे, जिनमें से 560 करोड़ रुपये एनआईपीईआर स्थापित करने के लिए और शेष राशि का उपयोग एनआईपीईआर योजना के तहत नई पहलों के लिए किया जाना था। जिसमें एनआईएमईआर के लिए 200 करोड़ रुपए, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के लिए 233 करोड़ रुपए, आईसीपीएमआर के लिए 50 करोड़ रुपए और फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए 243.00 करोड़ रुपए दिए गए थे।

इस बीच, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोटापे और मधुमेह के उपचार में इस्तेमाल होने वाली ग्लूकागन जैसी पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) दवाओं के घरेलू उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी 2026 तक भारत में शुरू होने की उम्मीद है।

यह मधुमेह और मोटापे की बढ़ती घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के नोवो नॉर्डिस्क (ओज़ेम्पिक) और एली लिली (ज़ेपबाउंड) द्वारा जीएलपी-1 दवाओं के वर्तमान फॉर्मूलेशन भारत में उपलब्ध नहीं हैं।

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

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