नई दिल्ली 13 अगस्त (आईएएनएस)। 13 अगस्त को जब हम अहिल्या बाई होल्कर की पुण्यतिथि मनाते हैं, तो समाज में उनके अद्वितीय योगदान को सभी याद करते हैं। विशेष रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर और गुजरात के सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए उनके समर्पण को।
अहिल्या बाई का नाम भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने न केवल एक प्रभावशाली शासक के रूप में बल्कि एक धार्मिक संरक्षिका के रूप में भी अमिट छाप छोड़ी।
अहिल्याबाई होल्कर ने साल 1767 से 1795 तक कुल 28 वर्षों तक मराठा साम्राज्य की कमान संभाली। इस दौरान उन्होंने भारत के तमाम ऐसे मंदिर जिन्हें कभी मुगल बादशाहों ने तबाह कर दिया था, का पुनर्निमाण करवाया।
18वीं सदी के मध्य में, जब भारतीय उपमहाद्वीप का सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य संघर्षरत था, अहिल्या बाई होल्कर ने अपने समृद्ध और प्रभावशाली शासनकाल के दौरान सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी संभाली। सोमनाथ मंदिर, जो एक समय हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल था, कई आक्रमणों और विनाशों का शिकार हो चुका था। इसके शिलालेख और मूर्तियों की धूल और विनाश की गाथा भारतीय संस्कृति की गहरी पीड़ा का प्रतीक बन चुकी थी।
अहिल्या बाई ने इस मंदिर को नए सिरे से संजीवनी देने का संकल्प लिया। उनके नेतृत्व में, सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण केवल एक भौतिक संरचना का निर्माण नहीं था, बल्कि यह भारतीय धार्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास था। उन्होंने इस परियोजना के लिए विशाल वित्तीय संसाधन और संसाधन जुटाए, और एक बार फिर से मंदिर की भव्यता को लौटाने के लिए शिल्पकारों और वास्तुविदों की टीम का गठन किया।
उनकी दूरदर्शिता और समर्पण ने सोमनाथ मंदिर को केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक प्रतीक बना दिया। इस पुनर्निर्माण ने न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर को बचाया बल्कि लाखों भक्तों को एक नई आशा और प्रेरणा दी।
सोमनाथ मंदिर के अलावा उन्होंने काशी के विश्वनाथ मंदिर और देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया। काशी के विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट के निर्माण का श्रेय भी अहिल्याबाई होलकर को ही जाता है। उन्होंने 17वीं शताब्दी के अंत में इसका निर्माण कराया था। इसके अलावा मांडू में नीलकंठ महादेव के मंदिर को भी उन्हींने बनवाया था।
साथ ही देश के ज्यादातर तीर्थ स्थानों पर भोजनालय और विश्रामगृह आदि की स्थापना भी उन्होंने ही करवाई। उन्होंने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क का भी निर्माण करवाया था।
अहिल्या बाई का यह कार्य न केवल उनकी प्रशासनिक क्षमता का प्रमाण है बल्कि उनके धर्म और संस्कृति के प्रति अडिग विश्वास का भी परिचायक है। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ, उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि सच्ची शक्ति और समर्पण से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।
–आईएएनएस
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