नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।
–आईएएनएस
एसटीपी/एसकेपी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण यानी सब-क्लासिफिकेशन को लेकर दिए गए फैसले और क्रीमी लेयर को लेकर दिए गए सुझाव के बाद देशभर में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव दोनों को ही सिरे से खारिज कर दिया गया था।
यहां तक कि 9 अगस्त को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ शब्दों में कहा था, “अभी जो हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के विषय पर एक फैसला दिया है, इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के आरक्षण के विषय में कुछ सुझाव दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई और कैबिनेट का सुविचारित मत है कि एनडीए सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के बनाए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है, संकल्पबद्ध है। बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। कैबिनेट का सुविचारित मत है कि बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही एससी और एसटी के आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।”
हाल ही में समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले भाजपा के भी लगभग 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपकर, एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लागू नहीं होने देने की मांग की थी। सरकार द्वारा 9 अगस्त को ही स्थिति साफ किए जाने के बाद भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
देश के कई संगठनों खासकर दलित संगठनों द्वारा 21 अगस्त को बुलाए गए भारत बंद को देश के कई विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया गया, लेकिन सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का सबब चिराग पासवान का स्टैंड बन गया। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और वे स्वयं केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान ने राजनीतिक मजबूरियों के कारण भारत बंद का समर्थन किया।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है। ऐसे में सरकार के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा आलाकमान को यह लग रहा है कि विपक्षी दल अगर एससी और एसटी समुदाय के बीच अपना नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते हैं तो भाजपा और एनडीए को चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
सूत्रों की मानें तो सरकार में इसे लेकर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल सरकार में शीर्ष स्तर पर दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले को बदलने को कहा जाए। हालांकि इस मामले से कई अन्य अहम पहलू भी जुड़े हुए हैं। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में चले इस मामले में एक पार्टी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है वह दो हिस्से में हैं — एक हिस्सा आदेश है और दूसरा सुझाव है, इसलिए सरकार तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
सरकार के पास संसद में विधेयक या प्रस्ताव लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने का भी विकल्प खुला है, जिस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। लेकिन चूंकि अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है और स्थिति को जल्द से जल्द स्पष्ट करना बहुत जरूरी है, ऐसे में सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इसे लेकर कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश या किसी प्रस्ताव को मंजूरी दी जा सकती है, जो तुरंत लागू हो जाएगा और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर दोनों सदनों की मंजूरी भी ले ली जाएगी।
सरकार में शीर्ष स्तर पर इन दोनों उपायों पर विचार-विमर्श चल रहा है और सरकार जल्द ही इसे लेकर अंतिम निर्णय ले सकती है। कई सहयोगी दल भी सरकार पर इसे लेकर दबाव डाल रहे हैं।