deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

तस्लीमा नसरीन का उपन्यास ‘लज्जा’, जिसके कारण छोड़ना पड़ा बांग्लादेश, मांगी थी भारत की नागरिकता

by
September 11, 2024
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
2
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

READ ALSO

शिव की नगरी में विराजती हैं महागौरी, जहां सिर्फ हाजिरी लगाने से ही धुल जाते हैं सारे पाप

झारखंड के गिरिडीह में शातिर गिरोह का भंडाफोड़, चोरी की छह बाइक के साथ तीन गिरफ्तार

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। बात साल 1993 की है, बांग्लादेश के बाजार में एक उपन्यास आया, जिसका नाम था “लज्जा”। जो साल 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद हुए दंगों पर आधारित है। इस उपन्यास में हिंदू परिवारों के साथ हुई हिंसा का जिक्र था। बाजार में आते ही यह उपन्यास कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया और कुछ समय बाद ही इस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। लेकिन, छह महीने के भीतर ही इसने रिकॉर्ड तोड़ डाले और इसकी करीब 50 हजार से अधिक प्रतियों को हाथों-हाथ ले लिया गया।

“लज्जा” को तो शोहरत मिली, लेकिन इसे लिखने वाली लेखिका को अपना मुल्क छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवादित उपन्यास को लिखने वाली लेखिका का नाम है तस्लीमा नसरीन। जो अपने उपन्यास के चलते कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा। कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा।

बांग्लादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया “लज्जा” पांचवां उपन्यास था। उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की। हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए। हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की। तस्लीमा नसरीन की सबसे अधिक मुश्किल उस वक्त बड़ी, जब उनके नए उपन्यास “लज्जा” को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

“लज्जा” के बाद अक्टूबर 1993 में एक कट्टरपंथी समूह ने उनकी मौत के लिए इनाम तक की घोषणा की। नौबत यहां तक आई कि उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद नसरीन ने अगले दस साल स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में निर्वासन में बिताए।

एक दशक से अधिक समय तक रहने के बाद वह 2004 में भारत आईं, इस दौरान उन्होंने कोलकाता को अपना नया ठिकाना बनाया। कोलकाता में भी उनका जीवन मुश्किलों से भरा रहा। यहां भी उनका विरोध होने लगा और उन्हें दिल्ली आना पड़ा। साल 2006 में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। लेकिन, इस पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं लिया गया बल्कि उन्हें आवासीय परमिट दे दिया गया।

इस्लाम की आलोचना के लिए तस्लीमा नसरीन पर भारत में भी कई बार हमले की कोशिश की गई। मगर इन हमलों के बाद भी वह डरी नहीं। इस दौरान उन्होंने कविताएं, निबंध, उपन्यास समेत कई किताबें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों का 20 अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया। तस्लीमा नसरीन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में उनके योगदान के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

–आईएएनएस

एफएम/एफजेड

Related Posts

शिव की नगरी में विराजती हैं महागौरी, जहां सिर्फ हाजिरी लगाने से ही धुल जाते हैं सारे पाप
ताज़ा समाचार

शिव की नगरी में विराजती हैं महागौरी, जहां सिर्फ हाजिरी लगाने से ही धुल जाते हैं सारे पाप

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

झारखंड के गिरिडीह में शातिर गिरोह का भंडाफोड़, चोरी की छह बाइक के साथ तीन गिरफ्तार

September 30, 2025
भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव से पाएं राहत, शरीर को लचीला बनाने के लिए करें ये 3 योगासन
ताज़ा समाचार

भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव से पाएं राहत, शरीर को लचीला बनाने के लिए करें ये 3 योगासन

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

सुरों के शहंशाह: ‘परफेक्शनिस्ट’ एसडी बर्मन, जो एक गाने के लिए लता मंगेशकर से 5 साल तक रहे नाराज

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

जेन-जी का राज कपूर-गुरु दत्त जैसे सिनेमा के दिग्गजों को भूलना चिंताजनक: सुभाष घई

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

1 अक्टूबर: आज ही जन्मे दो दिग्गज, एक ने वेटलिफ्टिंग में लहराया परचम, दूसरा कहलाया ‘बॉम्बे टाइगर’

September 30, 2025
Next Post

पुण्यतिथि विशेष : 'आधुनिक युग की मीरा', एक ऐसी कवयित्री जिन्हें हर कोई करता है नमन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

116171
Total views : 6027370
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In