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Home ताज़ा समाचार

जीवन पर्यंत मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे महंत दिग्विजयनाथ : मुख्यमंत्री योगी

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September 20, 2024
in ताज़ा समाचार
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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

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उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

विकेटी/एबीएम

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

विकेटी/एबीएम

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

–आईएएनएस

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

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गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना, बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिस स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा निःश्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं, बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है। सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि यह आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का सामना करते हुए अहर्निश जीवंत है। सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है, लेकिन भारत में अंततः नाकाम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारे रहन-सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है। महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।

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