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Home ताज़ा समाचार

सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी पर कहा, हम हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकते

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December 6, 2022
in ताज़ा समाचार
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सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी पर कहा, हम हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकते
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नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2016 में केंद्र के नोटबंदी के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकता, क्योंकि यह एक आर्थिक नीति है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्न की पीठ से कहा कि विमुद्रीकरण नीति का उद्देश्य काले धन और नकली मुद्राओं पर अंकुश लगाना था। इससे एक भी बैंक को नुकसान नहीं हुआ।

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गुप्ता ने कहा कि संवैधानिक आधार पर निर्णय को कोई चुनौती नहीं है, और इसलिए आनुपातिकता के सिद्धांत को केवल उसी सीमा तक लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि अटॉर्नी जनरल के नोट में भी सुझाव दिया गया था कि उद्देश्य और पद्धति के बीच तालमेल होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जहां तक आर्थिक नीति के फैसलों का संबंध है, यह नियम के खिलाफ होगा और आर्थिक नीतिगत उपाय होने के नाते अदालत फैसले की समीक्षा नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अदालत नोटबंदी को लागू करने के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, लेकिन यह इस बात पर विचार कर सकती है कि इसे कैसे लाया गया और दोनों चीजें पूरी तरह से अलग हैं।

उन्होंने कहा, सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती। सरकार अपने विवेक से निर्णय लेती है, क्योंकि वह जानती है कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है, लेकिन निर्णय को लेते समय रिकॉर्ड पर कौन से तथ्य या प्रासंगिक विचार थे?

दिनभर चली सुनवाई में आरबीआई के वकील ने पीठ को बताया कि लोगों को अपने नोट बदलने के पर्याप्त अवसर दिए गए।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार को पूरे विश्वास के साथ अपने निर्णय और निर्णय लेने की प्रक्रिया का बचाव करना चाहिए और संबंधित दस्तावेज अदालत के सामने रखने चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस मामले में संसद के माध्यम से कोई मार्ग अपनाती तो विपक्षी सांसद नीति को रोक देते, लेकिन उसने विधायी मार्ग का पालन नहीं किया।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई गवर्नर को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि 1946 और 1978 में केंद्रीय बैंक ने विमुद्रीकरण का विरोध किया था और विधायिका की पूर्ण शक्ति का सहारा लिया था।

उन्होंने अदालत से दस्तावेजों को देखने इस पर विचार करने का आग्रह किया कि क्या निर्णय लेना उचित था और मनमाना नहीं था।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई का इतिहास केंद्रीय बैंक द्वारा प्रकाशित किया गया है। उस पर भी गौर किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में मौजूद सदस्यों की संख्या के बारे में भी पूछताछ की, जिसने 2016 में नोटबंदी के संबंध में सिफारिश करने का फैसला किया था।

गुप्ता ने तर्क दिया कि केंद्र को सिफारिश करने के लिए आरबीआई अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन किया गया था और निर्धारित कोरम पूरा किया गया था।

गुप्ता ने कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने बैठक की और नोटबंदी की सिफारिश करने का फैसला किया और फिर यह केंद्र के पास गया, जिसने कार्रवाई करने का फैसला किया। इसलिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।

आरबीआई से कोरम के संबंध में ब्योरा पेश करने के लिए कहते हुए पीठ ने कहा, कितने सदस्य मौजूद थे? हमें यह बताने में आपको कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

गुप्ता ने आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की।

चिदंबरम ने इससे पहले आरोप लगाया था कि केंद्र और आरबीआई उस बैठक के संबंध में जानकारी छिपा रहे हैं।

आरबीआई अधिनियम के तहत केंद्र को नोटों के विमुद्रीकरण या किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की किसी भी श्रृंखला के लिए कानूनी निविदा खत्म करने की सिफारिश आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड को करनी होती है।

शीर्ष अदालत 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2016 में केंद्र के नोटबंदी के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकता, क्योंकि यह एक आर्थिक नीति है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्न की पीठ से कहा कि विमुद्रीकरण नीति का उद्देश्य काले धन और नकली मुद्राओं पर अंकुश लगाना था। इससे एक भी बैंक को नुकसान नहीं हुआ।

गुप्ता ने कहा कि संवैधानिक आधार पर निर्णय को कोई चुनौती नहीं है, और इसलिए आनुपातिकता के सिद्धांत को केवल उसी सीमा तक लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि अटॉर्नी जनरल के नोट में भी सुझाव दिया गया था कि उद्देश्य और पद्धति के बीच तालमेल होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जहां तक आर्थिक नीति के फैसलों का संबंध है, यह नियम के खिलाफ होगा और आर्थिक नीतिगत उपाय होने के नाते अदालत फैसले की समीक्षा नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अदालत नोटबंदी को लागू करने के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, लेकिन यह इस बात पर विचार कर सकती है कि इसे कैसे लाया गया और दोनों चीजें पूरी तरह से अलग हैं।

उन्होंने कहा, सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती। सरकार अपने विवेक से निर्णय लेती है, क्योंकि वह जानती है कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है, लेकिन निर्णय को लेते समय रिकॉर्ड पर कौन से तथ्य या प्रासंगिक विचार थे?

दिनभर चली सुनवाई में आरबीआई के वकील ने पीठ को बताया कि लोगों को अपने नोट बदलने के पर्याप्त अवसर दिए गए।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार को पूरे विश्वास के साथ अपने निर्णय और निर्णय लेने की प्रक्रिया का बचाव करना चाहिए और संबंधित दस्तावेज अदालत के सामने रखने चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस मामले में संसद के माध्यम से कोई मार्ग अपनाती तो विपक्षी सांसद नीति को रोक देते, लेकिन उसने विधायी मार्ग का पालन नहीं किया।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई गवर्नर को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि 1946 और 1978 में केंद्रीय बैंक ने विमुद्रीकरण का विरोध किया था और विधायिका की पूर्ण शक्ति का सहारा लिया था।

उन्होंने अदालत से दस्तावेजों को देखने इस पर विचार करने का आग्रह किया कि क्या निर्णय लेना उचित था और मनमाना नहीं था।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई का इतिहास केंद्रीय बैंक द्वारा प्रकाशित किया गया है। उस पर भी गौर किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में मौजूद सदस्यों की संख्या के बारे में भी पूछताछ की, जिसने 2016 में नोटबंदी के संबंध में सिफारिश करने का फैसला किया था।

गुप्ता ने तर्क दिया कि केंद्र को सिफारिश करने के लिए आरबीआई अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन किया गया था और निर्धारित कोरम पूरा किया गया था।

गुप्ता ने कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने बैठक की और नोटबंदी की सिफारिश करने का फैसला किया और फिर यह केंद्र के पास गया, जिसने कार्रवाई करने का फैसला किया। इसलिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।

आरबीआई से कोरम के संबंध में ब्योरा पेश करने के लिए कहते हुए पीठ ने कहा, कितने सदस्य मौजूद थे? हमें यह बताने में आपको कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

गुप्ता ने आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की।

चिदंबरम ने इससे पहले आरोप लगाया था कि केंद्र और आरबीआई उस बैठक के संबंध में जानकारी छिपा रहे हैं।

आरबीआई अधिनियम के तहत केंद्र को नोटों के विमुद्रीकरण या किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की किसी भी श्रृंखला के लिए कानूनी निविदा खत्म करने की सिफारिश आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड को करनी होती है।

शीर्ष अदालत 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2016 में केंद्र के नोटबंदी के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकता, क्योंकि यह एक आर्थिक नीति है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्न की पीठ से कहा कि विमुद्रीकरण नीति का उद्देश्य काले धन और नकली मुद्राओं पर अंकुश लगाना था। इससे एक भी बैंक को नुकसान नहीं हुआ।

गुप्ता ने कहा कि संवैधानिक आधार पर निर्णय को कोई चुनौती नहीं है, और इसलिए आनुपातिकता के सिद्धांत को केवल उसी सीमा तक लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि अटॉर्नी जनरल के नोट में भी सुझाव दिया गया था कि उद्देश्य और पद्धति के बीच तालमेल होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जहां तक आर्थिक नीति के फैसलों का संबंध है, यह नियम के खिलाफ होगा और आर्थिक नीतिगत उपाय होने के नाते अदालत फैसले की समीक्षा नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अदालत नोटबंदी को लागू करने के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, लेकिन यह इस बात पर विचार कर सकती है कि इसे कैसे लाया गया और दोनों चीजें पूरी तरह से अलग हैं।

उन्होंने कहा, सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती। सरकार अपने विवेक से निर्णय लेती है, क्योंकि वह जानती है कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है, लेकिन निर्णय को लेते समय रिकॉर्ड पर कौन से तथ्य या प्रासंगिक विचार थे?

दिनभर चली सुनवाई में आरबीआई के वकील ने पीठ को बताया कि लोगों को अपने नोट बदलने के पर्याप्त अवसर दिए गए।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार को पूरे विश्वास के साथ अपने निर्णय और निर्णय लेने की प्रक्रिया का बचाव करना चाहिए और संबंधित दस्तावेज अदालत के सामने रखने चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस मामले में संसद के माध्यम से कोई मार्ग अपनाती तो विपक्षी सांसद नीति को रोक देते, लेकिन उसने विधायी मार्ग का पालन नहीं किया।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई गवर्नर को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि 1946 और 1978 में केंद्रीय बैंक ने विमुद्रीकरण का विरोध किया था और विधायिका की पूर्ण शक्ति का सहारा लिया था।

उन्होंने अदालत से दस्तावेजों को देखने इस पर विचार करने का आग्रह किया कि क्या निर्णय लेना उचित था और मनमाना नहीं था।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई का इतिहास केंद्रीय बैंक द्वारा प्रकाशित किया गया है। उस पर भी गौर किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में मौजूद सदस्यों की संख्या के बारे में भी पूछताछ की, जिसने 2016 में नोटबंदी के संबंध में सिफारिश करने का फैसला किया था।

गुप्ता ने तर्क दिया कि केंद्र को सिफारिश करने के लिए आरबीआई अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन किया गया था और निर्धारित कोरम पूरा किया गया था।

गुप्ता ने कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने बैठक की और नोटबंदी की सिफारिश करने का फैसला किया और फिर यह केंद्र के पास गया, जिसने कार्रवाई करने का फैसला किया। इसलिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।

आरबीआई से कोरम के संबंध में ब्योरा पेश करने के लिए कहते हुए पीठ ने कहा, कितने सदस्य मौजूद थे? हमें यह बताने में आपको कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

गुप्ता ने आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने पर सहमति व्यक्त की।

चिदंबरम ने इससे पहले आरोप लगाया था कि केंद्र और आरबीआई उस बैठक के संबंध में जानकारी छिपा रहे हैं।

आरबीआई अधिनियम के तहत केंद्र को नोटों के विमुद्रीकरण या किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की किसी भी श्रृंखला के लिए कानूनी निविदा खत्म करने की सिफारिश आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड को करनी होती है।

शीर्ष अदालत 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्न की पीठ से कहा कि विमुद्रीकरण नीति का उद्देश्य काले धन और नकली मुद्राओं पर अंकुश लगाना था। इससे एक भी बैंक को नुकसान नहीं हुआ।

गुप्ता ने कहा कि संवैधानिक आधार पर निर्णय को कोई चुनौती नहीं है, और इसलिए आनुपातिकता के सिद्धांत को केवल उसी सीमा तक लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि अटॉर्नी जनरल के नोट में भी सुझाव दिया गया था कि उद्देश्य और पद्धति के बीच तालमेल होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जहां तक आर्थिक नीति के फैसलों का संबंध है, यह नियम के खिलाफ होगा और आर्थिक नीतिगत उपाय होने के नाते अदालत फैसले की समीक्षा नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि अदालत नोटबंदी को लागू करने के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, लेकिन यह इस बात पर विचार कर सकती है कि इसे कैसे लाया गया और दोनों चीजें पूरी तरह से अलग हैं।

उन्होंने कहा, सिर्फ इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, अदालत हाथ जोड़कर बैठ नहीं सकती। सरकार अपने विवेक से निर्णय लेती है, क्योंकि वह जानती है कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है, लेकिन निर्णय को लेते समय रिकॉर्ड पर कौन से तथ्य या प्रासंगिक विचार थे?

दिनभर चली सुनवाई में आरबीआई के वकील ने पीठ को बताया कि लोगों को अपने नोट बदलने के पर्याप्त अवसर दिए गए।

एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि सरकार को पूरे विश्वास के साथ अपने निर्णय और निर्णय लेने की प्रक्रिया का बचाव करना चाहिए और संबंधित दस्तावेज अदालत के सामने रखने चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस मामले में संसद के माध्यम से कोई मार्ग अपनाती तो विपक्षी सांसद नीति को रोक देते, लेकिन उसने विधायी मार्ग का पालन नहीं किया।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई गवर्नर को इस तथ्य से पूरी तरह अवगत होना चाहिए कि 1946 और 1978 में केंद्रीय बैंक ने विमुद्रीकरण का विरोध किया था और विधायिका की पूर्ण शक्ति का सहारा लिया था।

उन्होंने अदालत से दस्तावेजों को देखने इस पर विचार करने का आग्रह किया कि क्या निर्णय लेना उचित था और मनमाना नहीं था।

चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई का इतिहास केंद्रीय बैंक द्वारा प्रकाशित किया गया है। उस पर भी गौर किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में मौजूद सदस्यों की संख्या के बारे में भी पूछताछ की, जिसने 2016 में नोटबंदी के संबंध में सिफारिश करने का फैसला किया था।

गुप्ता ने तर्क दिया कि केंद्र को सिफारिश करने के लिए आरबीआई अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन किया गया था और निर्धारित कोरम पूरा किया गया था।

गुप्ता ने कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने बैठक की और नोटबंदी की सिफारिश करने का फैसला किया और फिर यह केंद्र के पास गया, जिसने कार्रवाई करने का फैसला किया। इसलिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।

आरबीआई से कोरम के संबंध में ब्योरा पेश करने के लिए कहते हुए पीठ ने कहा, कितने सदस्य मौजूद थे? हमें यह बताने में आपको कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

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चिदंबरम ने इससे पहले आरोप लगाया था कि केंद्र और आरबीआई उस बैठक के संबंध में जानकारी छिपा रहे हैं।

आरबीआई अधिनियम के तहत केंद्र को नोटों के विमुद्रीकरण या किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की किसी भी श्रृंखला के लिए कानूनी निविदा खत्म करने की सिफारिश आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड को करनी होती है।

शीर्ष अदालत 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

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