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Home ताज़ा समाचार

खाद वितरण का काम निजी हाथों में देने से कालाबाजारी हो रही है : दिग्विजय सिंह

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September 27, 2024
in ताज़ा समाचार
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भोपाल, 27 सितंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने प्रदेश की डॉ मोहन यादव सरकार पर निशाना साधते हुए कालाबाजारी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। बता दें कि एक दिन पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किसानोंं के बीच खाद वितरण को लेकर आ रही परेशानी पर बैठक की थी।

उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

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उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

–आईएएनएस

पीएसएम/जीकेटी

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भोपाल, 27 सितंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने प्रदेश की डॉ मोहन यादव सरकार पर निशाना साधते हुए कालाबाजारी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। बता दें कि एक दिन पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किसानोंं के बीच खाद वितरण को लेकर आ रही परेशानी पर बैठक की थी।

उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

–आईएएनएस

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भोपाल, 27 सितंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने प्रदेश की डॉ मोहन यादव सरकार पर निशाना साधते हुए कालाबाजारी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। बता दें कि एक दिन पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने किसानोंं के बीच खाद वितरण को लेकर आ रही परेशानी पर बैठक की थी।

उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

–आईएएनएस

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उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

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उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

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उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

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उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

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बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

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उन्होंने कहा, ”मध्य प्रदेश में बुआई के समय हमेशा खाद की किल्लत हो जाती है। यह इसलिए होता है, क्योंकि प्रदेश की सारी सहकारी समितियां ओवरड्यू हो गई हैं। अभी तक खादों का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होता था, अब उसे निजी क्षेत्रों को दे दिया गया है। वहां पर अधिकांश खादों की कालाबाजारी हो रही है। यह कालाबाजारी इसलिए हो रही है, क्योंकि मध्य प्रदेश का खाद विभाग इस पर कोई अंकुश नहीं लग रहा है, प्रशासन पूरी तरीके से उसमें अपना हिस्सा लेता है। इस समय प्रदेश में लगभग 8 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है, लेकिन इस मांग के खिलाफ केवल 1.5 लाख टन खाद उपलब्ध हो पाया है। अभी तक संस्थाएं 70 फीसदी खाद की आपूर्ति करती रही हैं। उनमें में अभी केवल 15 फीसदी खाद मिल पाई है।”

उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से मांग करते आया हूं कि पूरे फर्टिलाइजर का वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से होना चाहिए। तभी हम लोग ईमानदारी से खाद का वितरण कर पाएंगे। क्योंकि सहकारी समितियों का गोदाम हर गांव के आसपास ही होता है। इसलिए व्यवस्था में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।”

बता दें कि भारत में मानसून की बारिश के बाद अक्टूबर के अंत से रबी फसल की बुआई शुरू हो जाती है। इन फसलों की बुआई के लिए किसानों को मुख्यत: डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश और सल्फर जैसी खादों की आवश्यकता होती है। इन फसलों की बुआई के समय अक्सर देश में खादों की कमी हो जाती है, क्योंकि पूरे साल में यही वह समय है जब खादों की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सबसे मुख्य फसल गेहूं की है। गेंहू के लिए मुख्यत: डीएपी, एनपीके और यूरिया की जरूरत होती है।

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