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Home अर्थजगत

झारखंड के सुरदा में देश की सबसे पुरानी एचसीएल कॉपर माइंस में चार साल बाद उत्पादन शुरू

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October 5, 2024
in अर्थजगत
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झारखंड के सुरदा में देश की सबसे पुरानी एचसीएल कॉपर माइंस में चार साल बाद उत्पादन शुरू
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जमशेदपुर, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड के मुसाबनी स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) सुरदा कॉपर माइंस को नई जिंदगी मिल गई है। देश की यह सबसे पुरानी कॉपर माइंस लीज खत्म होने की वजह से एक अप्रैल 2020 से बंद हो गई थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

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इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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जमशेदपुर, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड के मुसाबनी स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) सुरदा कॉपर माइंस को नई जिंदगी मिल गई है। देश की यह सबसे पुरानी कॉपर माइंस लीज खत्म होने की वजह से एक अप्रैल 2020 से बंद हो गई थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

–आईएएनएस

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जमशेदपुर, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड के मुसाबनी स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) सुरदा कॉपर माइंस को नई जिंदगी मिल गई है। देश की यह सबसे पुरानी कॉपर माइंस लीज खत्म होने की वजह से एक अप्रैल 2020 से बंद हो गई थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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जमशेदपुर, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड के मुसाबनी स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) सुरदा कॉपर माइंस को नई जिंदगी मिल गई है। देश की यह सबसे पुरानी कॉपर माइंस लीज खत्म होने की वजह से एक अप्रैल 2020 से बंद हो गई थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

–आईएएनएस

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जमशेदपुर, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड के मुसाबनी स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) सुरदा कॉपर माइंस को नई जिंदगी मिल गई है। देश की यह सबसे पुरानी कॉपर माइंस लीज खत्म होने की वजह से एक अप्रैल 2020 से बंद हो गई थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

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चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइंस को पुनः चालू करने के लिए हाल में माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि की लीज क्लीयरेंस दी थी। इसके साथ ही माइंस के फिर से परिचालन का रास्ता साफ हो गया। केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने शनिवार को माइंस के शिलापट्ट का अनावरण किया। इसके साथ ही यहां से उत्पादन की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई।

इस मौके पर झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग एवं तकनीकी उच्च शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन और जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो सहित एचसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा मौजूद रहे।

मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में साढ़े चार पहले जब ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गई थी। इससे ना सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगार हो गए थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गए थे। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद में लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था। यह रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गई थी।

चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है। ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था। उस समय इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आईसीसी) के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था।

मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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चार साल से खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी माइनिंग रॉयल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रॉयल्टी, जीएसटी मद में लगभग 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। अब खदान का परिचालन फिर से शुरू होने से इलाके में खुशी की लहर है।

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मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था। कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है। एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनाई है।

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