नई दिल्ली, 19 अक्टूबर (आईएएनएस)। कर्नाटक के ऑफ स्पिनर और निचले क्रम के धाकड़ बल्लेबाज कृष्णप्पा गौतम को ‘भज्जी’ नाम से भी पुकारा जाता है। भज्जी…एक ऐसा नाम जो भारतीय क्रिकेट में हमेशा के लिए हरभजन सिंह ने ले लिया है। हरभजन सिंह कृष्णप्पा गौतम के भी आदर्श रहे हैं। हरभजन सिंह से इस लगाव के चलते ना केवल उन्होंने “भज्जी” नाम पाया बल्कि हरभजन के बॉलिंग एक्शन को भी खूब कॉपी किया था। हरभजन पर गौतम के प्रभाव का यह असर साल 2008 में रंग लाया था।
20 अक्टूबर, 1988 को बेंगलुरु में जन्में कृष्णप्पा गौतम को 2008 में बेंगलुरु में ऑस्ट्रेलियाई टीम के नेट्स में गेंदबाजी करने के लिए बुलाया गया। वजह यही थी कि उनकी गेंदबाजी शैली काफी हद तक हरभजन से मिलती-जुलती थी। हरभजन के मुरीद गौतम को महान गेंदबाज इरापल्ली प्रसन्ना ने तराशा था। 24 साल की उम्र में, उन्होंने 2012 में उत्तर प्रदेश के खिलाफ कर्नाटक के लिए अपना पहला प्रथम श्रेणी मैच खेला।
हालांकि यह उनके प्रदर्शन के साथ करियर में भी उतार-चढ़ाव का दौर था। लेकिन 2017 में, गौतम कर्नाटक के प्रमुख स्पिनरों में से एक बनकर उभरे। इस दौरान उन्होंने अपनी गेंदबाजी शैली में बदलाव किया और 2016 में कर्नाटक प्रीमियर लीग में शानदार प्रदर्शन के दम पर फिर से कर्नाटक की रणजी टीम में वापसी की थी। इसी दौरान उन्हें 2017 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक टूर मैच के लिए इंडिया ए टीम में चुना गया था।
गौतम ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया और 68 गेंदों में 74 रनों की तेजतर्रार पारी खेली। हालांकि, सितंबर 2017 में अनुशासनहीनता के कारण उन्हें इंडिया ए टीम से बाहर कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने माफी भी मांगी थी। 2017-18 की रणजी ट्रॉफी की शुरुआत में उन्होंने दो पारियों में सात विकेट लिए और असम के खिलाफ कर्नाटक की यादगार जीत में अपना पहला प्रथम श्रेणी शतक भी लगाया था।
ऑलराउंड प्रदर्शन के चलते 2018 की नीलामी में उन्हें राजस्थान रॉयल्स ने अपनी टीम में 6.2 करोड़ रुपए देकर शामिल किया था। गौतम ने आईपीएल में कुल मिलाकर 36 मैच खेले हैं। हालांकि उनका सपना पूरा हुआ था साल 2021 में, जब उनको श्रीलंका के खिलाफ आर प्रेमदासा स्टेडियम पर भारत के लिए डेब्यू करने का मौका मिला। उस मैच में गौतम ने निचले क्रम पर 3 गेंदों पर 2 रनों की पारी खेली थी और गेंदबाजी करते हुए 8 ओवरों में 49 रन देकर 1 विकेट हासिल किया था। दुर्भाग्य से उन्हें टीम इंडिया के लिए दोबारा खेलने का मौका नहीं मिला पाया।
20 अक्टूबर को भारत के एक और खेल दिग्गज मैनुअल फ्रेडरिक का जन्म हुआ था। मैनुअल फ्रेडरिक भारतीय हॉकी के पूर्व खिलाड़ी हैं, जो म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम के अहम सदस्य थे। वह इस टीम के गोलकीपर थे। मैनुअल फ्रेडरिक का यह पदक काफी खास था क्योंकि वह ओलंपिक मेडल जीतने वाले पहले केरलवासी बने थे। हालांकि तब उनको केरल में बड़ी पहचान नहीं मिल सकी थी।
केरल में जहां उनका जन्म हुआ था तो कर्नाटक उनकी कर्मभूमि साबित हुआ था। उन्होंने खेल के बाद बेंगलुरु में स्कूली बच्चों को कोचिंग देकर अपना गुजारा किया था। उन्होंने एक ओलंपिक मेडलिस्ट खिलाड़ी होने के बावजूद खेल जीवन के बाद के संघर्षों पर अपनी निराशा भी जाहिर की थी।
साल 2013 में एक बार उन्होंने कहा था, “मैंने सात बार ध्यान चंद अवॉर्ड के लिए अप्लाई किया, लेकिन कभी इसको प्राप्त नहीं कर सका। यह भारतीय हॉकी में मिलने वाला महानतम सम्मान है और मैं इसके साथ मिलने वाली धनराशि का इस्तेमाल कर सकता था।”
यह शब्द उनकी लाचारी और आर्थिक स्थिति को बयां करने के लिए काफी थे। लेकिन मैनुअल फ्रेडरिक को अपने खेल करियर और भारतीय टीम के उस प्रदर्शन पर हमेशा गर्व रहा, जिसने म्यूनिख में मेडल जीता था। मैनुअल फ्रेडरिक का कहना था कि वह टीम भले ही कांस्य पदक ही हासिल कर पाई थी, लेकिन वह गोल्ड की हकदार थी। वह टीम इतनी अच्छी थी।
आखिरकार 1947 में कन्नूर में जन्में फ्रेडरिक को साल 2019 में एक बड़ी पहचान मिली। जब उनको खेलों में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
–आईएएनएस
एएस/