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झारखंड में सत्ता की लड़ाई में सभी सात सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर

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October 29, 2024
in राष्ट्रीय
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झारखंड में सत्ता की लड़ाई में सभी सात सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर
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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

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इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

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रांची, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने करीब 25 वर्षों की अब तक की यात्रा में कुल सात शख्सियतों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है। इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में इन सभी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनमें से तीन, मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी एवं चंपई सोरेन खुद बतौर उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बाकी चार पूर्व सीएम शिबू सोरेन, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा में से किसी की बहू, किसी की पत्नी, तो किसी का पुत्र चुनावी रणक्षेत्र में है।

झारखंड के अलग राज्य के अस्तित्व में आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। वह झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं। भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2019 में झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई थी। राज्य में भाजपा के मुखिया के तौर पर उनके सामने पार्टी की खोई सत्ता वापस दिलाने की कड़ी चुनौती है। मरांडी अपने गृह क्षेत्र गिरिडीह जिले की धनवार सीट से बतौर उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर वर्ष 2019 में झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे थे।

इस बार बाबूलाल मरांडी को इस मायने में राहत है कि उनके खिलाफ इंडिया ब्लॉक साझा प्रत्याशी देने में नाकाम रहा है। यहां इंडिया ब्लॉक के दो घटक दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई एमएल ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी और सीपीआई एमएल ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया है। खास बात यह है कि मरांडी के अलावा दोनों प्रत्याशी भी पहले इस सीट से एक-एक बार विधायक चुने गए हैं। फिलहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के एक बागी प्रत्याशी निरंजन राय भी मैदान में उतरे हैं। वह मुकाबले में चौथा कोण बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

झारखंड के सभी पूर्व सीएम में सबसे उम्रदराज शिबू सोरेन हैं। वह अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दिन-प्रतिदिन की राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष हैं और आज भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इस लिहाज से चुनाव में उनकी भी प्रतिष्ठा का इम्तिहान है। उनके बेटे हेमंत सोरेन और बहू कल्पना सोरेन अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार हैं, जबकि बड़ी बहू सीता सोरेन ने अपनी राह अलग कर ली है और वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं।

मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता हैं और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वह गठबंधन को लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटा पाते हैं या नहीं। आज तक राज्य में किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन (प्री पोल अलायंस) को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता नहीं मिली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।

हेमंत सोरेन साहिबगंज जिले की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने गमालिएल हेंब्रम को उम्मीदवार बनाया है। वह मात्र पांच साल पहले राजनीति में आए हैं। इसके पहले वह सरकारी स्कूल में अनुबंध शिक्षक के रूप में सेवारत थे। उन्होंने पिछला चुनाव आजसू के टिकट पर लड़ा था और उन्हें मात्र 2,573 वोट मिले थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे मजबूत चेहरे को गमालिएल कितनी चुनौती दे पाते हैं।

चार दशक से भी अधिक समय तक झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहकर राजनीति करने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन अब भाजपा में हैं। वह अपनी परंपरागत सरायकेला सीट से मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला झामुमो के उम्मीदवार गणेश महली से होगा, जो पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे। दोनों परंपरागत प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन इस बार दोनों की पार्टियों की अदला-बदली हो गई है।

पिछले चुनाव में चंपई सोरेन ने गणेश महली को करीब 2 हजार वोटों से पराजित किया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को भी घाटशिला सीट से उतारा है। इस सीट पर जीत-हार से तय होगा कि चंपई सोरेन झामुमो से हटकर सियासी तौर पर कितने प्रभावी हैं।

राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा कोल्हान प्रमंडल की पोटका सीट से प्रत्याशी हैं। अर्जुन मुंडा ने इस बार खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, लेकिन पार्टी ने उनके कहने पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा है। यहां मीरा मुंडा का मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक संजीव सरदार से है। झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास अब ओडिशा के राज्यपाल हैं और इस वजह से राज्य की राजनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है, लेकिन उनकी परंपरागत सीट जमशेदपुर पूर्वी में भाजपा ने उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है।

स्वाभाविक तौर पर यहां की जीत-हार को भविष्य में रघुवर दास की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाएगा। राज्य के एकमात्र निर्दलीय सीएम रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगरनाथपुर सीट से प्रत्याशी हैं। यहां उनका सीधा मुकाबला झामुमो के सीटिंग विधायक सोना राम सिंकू से है। मधु कोड़ा खुद भी चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। ऐसे में पत्नी की सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

–आईएएनएस

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