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Home राष्ट्रीय

बसपा की कमजोरी का फायदा लेने की फिराक में चंद्रशेखर!

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November 6, 2024
in राष्ट्रीय
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बसपा की कमजोरी का फायदा लेने की फिराक में चंद्रशेखर!
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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

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राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

–आईएएनएस

विकेटी/एएस

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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लखनऊ, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हो रहे विधानसभा उपचुनाव में जहां एक ओर बहुजन समाज पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वहीं आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर इसकी कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में जुटे हैं। नगीना सीट से मिली जीत के बाद चंद्रशेखर उत्साहित हैं। दलितों के बीच लोकप्रिय होने के लिए नए कदम भी उठा रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों की माने तो बीते कई दशकों से मायावती दलित राजनीति का बड़ा चेहरा रहीं हैं, लेकिन चुनाव दर चुनाव हारने के बाद उनकी हालत काफी कमजोर होती जा रही है। उनकी खाली जगह भरने के लिए चंद्रशेखर आगे आ रहे हैं। चंद्रशेखर को राजनीति में न सिर्फ खुद को स्थापित करते देखा जा रहा है, बल्कि वह मजबूती से दलितों के हक में आवाज भी उठाते नजर आ रहे हैं।

सियासी दलों के आंकड़ों को देखे तो 2014 के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा का खाता नहीं खुल सका है। जनाधार भी 10 प्रतिशत से ज्यादा खिसक गया है। इस लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिल सकी है। 2019 में बसपा का वोट शेयर लगभग 19.43 प्रतिशत था, लेकिन अब सिर्फ 9.35 प्रतिशत ही रह गया है।

हरियाणा विधानसभा में भी बसपा तीसरे और चौथे स्थान पर जाती दिखी। यहां पर पार्टी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में बसपा 2000 से 2014 तक हर विधानसभा चुनाव में एक सीट जीती है। 2019 में भी उसे कोई सीट नहीं मिली थी। बसपा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 1.82 फीसदी वोट मिला है।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि नगीना चुनाव में चंद्रशेखर की पार्टी को मिली जीत के बाद दलितों में एक नई चेतना का उभार देखा जा रहा है। वह धीरे धीरे करके बसपा की कमजोरी का फायदा लेने में जुट गए है। सबसे ज्यादा उन्हें सक्रियता का फायदा मिला है। मायावती के फील्ड में न उतरने के बाद जो दलितों के बीच जाकर उनके मुद्दे उठा रहा है वह चंद्रशेखर हैं। इस कारण दलित नौजवानों में उनकी पैठ बढ़ रही है। उनके बीच वह लोकप्रिय हो रहे हैं।

बसपा को लगातार मिल रही हार से भी दलितों में उनके दल से कुछ मोह भंग हो रहा है। इसका फायदा चंद्रशेखर लेना चाहते हैं। इसी कारण वह पहले हरियाणा विधानसभा गठबंधन के साथ लड़े। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अब यूपी की नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर वह उपचुनाव लड़ रहे हैं। वह बहुजन समाज का प्रमुख चेहरा बनना चाहते हैं। दोनों दलों की तरफ से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश हो रही है। उपचुनाव के माध्यम से बसपा लोकसभा में अपने खिसके वोट पाना चाहती है। वहीं चंद्रशेखर दलित राजनीति का नया खेवनहार बनने की कोशिश कर रहे हैं।

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि उपचुनाव में हमारी बड़े स्तर की तैयारी है। आजाद समाज पार्टी भले ही चुनाव लड़े, उसका कोई मतलब नहीं है। यह लोग हरियाणा में भी चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे ज्यादा नोटा को वोट मिला है। जिस सपा ने कांशीराम, संत रविदास के नाम से बने जिले को खत्म किया है। उनका यह समर्थन कर रहे हैं। कानपुर सीट पर यह इनके द्वारा हो रहा है। दलित समाज को बरगलाने के प्रयास तो किए जा सकते हैं। लेकिन इस वर्ग की सच्ची हितैषी मायावती ही हैं।

आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हमारी पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कानपुर की सीट पर हमारा पर्चा निरस्त हो गया था। हम किसी की राह का रोड़ा नहीं हैं। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने और अपने हक लेने का अधिकार है। बहन जी की कोई बराबरी नहीं कर रहे हैं। वह तो मुख्यमंत्री ही बनकर रह गई है। हम अपने नीतियों और विचारों को लेकर चल रहे हैं। जिस दल को हमें सपोर्ट करना हो करे। हम महाराष्ट्र में 40 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में 14 सीटों में चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ राजस्थान और यूपी के उपचुनाव भी लड़ रहे हैं। हम अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं दशकों से जमे दलों को टक्कर दे रहे हैं।

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