नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) ने आवारा कुत्तों और पालतू कुत्तों से संबंधित परामर्श जारी किया है। बोर्ड का कहना है कि हाल के दिनों में, संज्ञान में आया है कि कुत्तों के खिलाफ अत्याचार, कुत्तों को खिलाने और देखभाल करने वालों के खिलाफ और शहरी नागरिकों के बीच के विवाद दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसी घटनाएं दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, नोएडा, मुंबई, पुणे, नागपुर आदि शहरों में कुत्तों के काटने की छिटपुट घटनाओं के कारण हो रही है।
एडब्ल्यूबीआई ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि आवारा कुत्तों और पालतू कुत्तों के संबंध में परामर्श जारी किया है जिसके तहत मान्यता प्राप्त एनजीओ को पशु जन्म नियंत्रण व रेबीज रोधी टीकाकरण (एबीसी/एआर) कार्यक्रम के लिए अनुमति दी गई है। प्रत्येक जिले में आवारा कुत्तों के लिए पर्याप्त संख्या में खिलाने वाली जगहों की पहचान करने को कहा गया है। मानव और पशु के बीच के संघर्ष में कमी लाने और समाज या क्षेत्र में शांति एवं सद्भाव स्थापित करने संबंधित, पशु कल्याण के मुद्दों पर कदम उठाने के लिए अनुरोध किया गया है।
मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मुताबिक आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के लिए पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 के प्रावधानों का प्रभावी कार्यान्वयन। सामुदायिक जानवरों को गोद लेने के लिए आदर्श प्रोटोकॉल को ठीक प्रकार से लागू करने और प्रसारित करने के लिए अनुरोध किया गया है।
कुत्तों का मुंह बांधने और सामुदायिक कुत्तों की देखभाल करने के लिए दिनांक 17 अगस्त को दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। केंद्र सरकार द्वारा पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 तैयार किया गया है, जिसे आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय प्राधिकरण द्वारा लागू किया जाता है। नियमों का मुख्य केंद्रबिंदु आवारा कुत्तों में रेबीज रोधी टीकाकरण और उनकी जनसंख्या स्थिर करने के साधन के रूप में आवारा कुत्तों को नपुंसक बनाना है।
मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का कहना है कि हालांकि, यह देखा गया है कि नगर निगम स्थानीय निकायों द्वारा पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 का कार्यान्वयन समुचित रूप से नहीं किया जा रहा है और इसके स्थान पर शहरी क्षेत्रों से कुत्तों को स्थानांतरित करने की कोशिश की जाती है।
–आईएएनएस
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