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Home ताज़ा समाचार

कुक्के सुब्रह्मण्य मंदिर में भव्य चंपाषष्ठी रथ उत्सव का आयोजन, हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी

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December 7, 2024
in ताज़ा समाचार
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बेंगलुरु, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कन्नड़ जिले के कुक्के सुब्रह्मण्य मंदिर में शनिवार सुबह भव्य चंपाषष्ठी रथ उत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर के वार्षिक रथ उत्सव का देखने के लिए हजारों श्रद्धालु इकट्ठा हुए।

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मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

–आईएएनएस

एफजेड/एफजेड

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बेंगलुरु, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कन्नड़ जिले के कुक्के सुब्रह्मण्य मंदिर में शनिवार सुबह भव्य चंपाषष्ठी रथ उत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर के वार्षिक रथ उत्सव का देखने के लिए हजारों श्रद्धालु इकट्ठा हुए।

मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

–आईएएनएस

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बेंगलुरु, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कन्नड़ जिले के कुक्के सुब्रह्मण्य मंदिर में शनिवार सुबह भव्य चंपाषष्ठी रथ उत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर के वार्षिक रथ उत्सव का देखने के लिए हजारों श्रद्धालु इकट्ठा हुए।

मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

–आईएएनएस

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बेंगलुरु, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कन्नड़ जिले के कुक्के सुब्रह्मण्य मंदिर में शनिवार सुबह भव्य चंपाषष्ठी रथ उत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर के वार्षिक रथ उत्सव का देखने के लिए हजारों श्रद्धालु इकट्ठा हुए।

मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

–आईएएनएस

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बेंगलुरु, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। दक्षिण कन्नड़ जिले के कुक्के सुब्रह्मण्य मंदिर में शनिवार सुबह भव्य चंपाषष्ठी रथ उत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर के वार्षिक रथ उत्सव का देखने के लिए हजारों श्रद्धालु इकट्ठा हुए।

मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

–आईएएनएस

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मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

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यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

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मंदिर के देवता भगवान सुब्रह्मण्य को सजे हुए रथ में मंदिर की सड़कों पर यात्रा के रूप में ले जाया गया। मंदिर के आसपास रंग-बिरंगी रोशनी और सजावट से वातावरण और भी उत्सवपूर्ण हो गया। इस उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां भी आयोजित की गईं।

यात्रा के लिए इस्तेमाल किया गया रथ बांस से बना था, जो इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सामग्री है। परंपरा के अनुसार, बांस के रथ का एक टुकड़ा उत्सव में हिस्सा लेने वाले भक्तों को प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में दिया जाता है।

जिले के विभिन्न भागों, राज्य और यहां तक ​​कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु इस उत्सव में भाग लेने के लिए एकत्रित हुए थे। मंदिर के अधिकारियों ने उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक व्यवस्था की थी।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चंपाषष्ठी का त्यौहार हर साल मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह शुभ दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह भगवान शिव के मार्कंडेय रूप और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए समर्पित है। खासकर कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में चंपा षष्ठी को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

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