लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
–आईएएनएस
एसके/एबीएम
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
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मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
–आईएएनएस
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
–आईएएनएस
एसके/एबीएम
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।
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लखनऊ, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने। इसके लिए वह हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं। वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं। इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है।
सरकार की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक खेती की तरक्की की बुनियाद गोवंश बनेंगे। निराश्रित गोवंशों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस खेती के अन्य लाभ होंगे। मसलन, जहरीले रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होने से क्रमशः जन, जमीन और जल की सेहत सुधरेगी। इनके नहीं प्रयोग होने से किसानों की खेती की लागत कम होगी। उत्पाद प्राकृतिक होने से किसानों को अपने उत्पाद के दाम भी अच्छे मिलेंगे। वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है। हर जगह ऐसे उत्पादों की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से इनके दाम भी अच्छे मिलेंगे।
मालूम हो कि प्रदेश का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। सात वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो गया है। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार 2017-2018 में उत्तर प्रदेश का निर्यात 88 हजार करोड़ रुपये था। 2023-2024 में यह बढ़कर 170 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता खुशहाल होंगे। खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा, वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा।
मुख्यमंत्री का गोवंश के प्रति प्रेम जगजाहिर है। वह अपने पहले कार्यकाल से ही गोवंश के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं। इस बाबत निराश्रित गोवंश के लिए गोआश्रय खोले गए। प्रति पशु के अनुसार भरण-पोषण के लिए पैसा भी दिया जाता है। चंद रोज पहले पेश किए गए अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1,001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री की मंशा इन गोआश्रयों को आत्मनिर्भर बनाने की है। ऐसा तभी संभव है, जब इनके गोबर और मूत्र को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाया जाए। इसके लिए समय-समय पर सरकार स्किल डेवलपमेंट का भी कार्यक्रम चलाती है। साथ ही मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड, पशु बाड़ा और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही है। मिनी नंदिनी योजना भी गोवंश के संरक्षण और संवर्धन को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसमें भी योगी सरकार कई तरह के अनुदान दे रही है।