नई दिल्ली, 2 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की उस याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें मौत की सजा को इस आधार पर कम करने की मांग की थी कि काफी लंबी अवधि के बाद भी केंद्र उसकी दया याचिका पर फैसला करने में विफल रहा।
राजोआना का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज कर रहे थे।
रोहतगी ने न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के समक्ष तर्क दिया कि लंबे समय तक राजोआना की दया याचिका पर बैठे रहने से उसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। दिलचस्प बात यह है कि राजोआना ने अपनी दोषसिद्धि या सजा को चुनौती नहीं दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सितंबर में राजोआना की ओर से दायर दया याचिका पर फैसला करने में देरी के लिए केंद्र की खिंचाई की थी। राजोआना फांसी की प्रतीक्षा में 25 साल से जेल में है।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित ने कहा था कि वह मामले में स्थगन देने के केंद्र के वकील के अनुरोध पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने केंद्र के वकील से कहा था कि उसके मई के आदेश के चार महीने बीत चुके हैं, क्योंकि उसने राजोआना की दया याचिका पर निर्णय लेने में देरी पर सवाल उठाया था।
शीर्ष अदालत ने संबंधित विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी को मामले की स्थिति पर एक हलफनामा दाखिल करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2 मई को राजोआना की दया याचिका पर फैसला लेने के लिए केंद्र को दो महीने का समय दिया था।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नटराज ने कहा कि दया याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह किसी अन्य संगठन द्वारा दायर की गई है, दोषी द्वारा नहीं। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने यह भी तर्क दिया है कि दया याचिका पर तब तक फैसला नहीं किया जा सकता, जब तक कि शीर्ष अदालत के समक्ष मामले में अन्य दोषियों द्वारा दायर अपीलों का निपटारा नहीं किया जाता। साथ ही, राजोआना ने अपनी दोषसिद्धि या सजा को न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता ने देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर के मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कैदी के नियंत्रण से परे, परिस्थितियों के कारण हुई देरी को ध्यान में रखते हुए मौत की सजा को कम करना अनिवार्य है।
–आईएएनएस
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