तमिलनाडु. भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित एक अद्भुत मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ज्योतिषीय समस्याओं से छुटकारा दिलाने में भी चमत्कारी माना जाता है. कीझापेरुमपल्लम गांव में स्थित नागनाथस्वामी मंदिर को केतु स्थल के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर केतु ग्रह को समर्पित है और यहां आने वाले भक्तों को उनके जीवन में आ रही अड़चनों से छुटकारा मिल जाता है.
क्या है विशेषता इस मंदिर की?
यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर स्थित है और दक्षिण भारत का एक प्रमुख नवग्रह मंदिर है. मंदिर में भगवान केतु को सांप के सिर और असुर के शरीर के साथ स्थापित किया गया है. यहां मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जिनकी पूजा केतु ने स्वयं अपने दोषों के निवारण के लिए की थी.
रहस्यमयी मान्यता: दूध से कटता है केतु दोष
इस मंदिर को लेकर एक रहस्यमयी मान्यता है, जिसे लेकर भक्तों में गहरी आस्था है: जब कोई केतु दोष से पीड़ित व्यक्ति मंदिर में राहु देव की मूर्ति पर दूध चढ़ाता है, तो वह दूध धीरे-धीरे नीले रंग में बदल जाता है. यह परिवर्तन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अब तक एक रहस्य बना हुआ है. भक्तों का मानना है कि यह प्रक्रिया केतु दोष की समाप्ति और ऊर्जा संतुलन का संकेत है.
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पौराणिक कथा क्या कहती है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार: ऋषि के श्राप से पीड़ित केतु ने इस स्थान पर आकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी. शिव ने शिवरात्रि के दिन प्रसन्न होकर केतु को दर्शन और आशीर्वाद दिया. तभी से इस मंदिर को केतु दोष से मुक्ति के सर्वश्रेष्ठ स्थल के रूप में पूजा जाता है.
ज्योतिषीय महत्व
केतु को वैदिक ज्योतिष में छाया ग्रह माना जाता है. यह ग्रह आध्यात्मिकता, गुप्त ज्ञान, पिछले जन्म के कर्म, और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा होता है. यदि कुंडली में केतु अशुभ हो तो जीवन में धोखा, भय, मानसिक अशांति और आध्यात्मिक भटकाव हो सकता है. इस मंदिर में पूजा करने से ये सभी नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं.
वास्तु और स्थापत्य
मंदिर का निर्माण चोल राजाओं द्वारा किया गया था. भगवान केतु की मूर्ति उत्तर प्रहरम में पश्चिम की ओर मुख करके स्थापित है. केतु को हाथ जोड़े भगवान शिव की आराधना करते हुए दिखाया गया है.