deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

अमर होने की चाहत में सामवेद से कर बैठा इश्क: डॉ. इकबाल दुर्रानी

by
March 19, 2023
in ताज़ा समाचार
0
अमर होने की चाहत में सामवेद से कर बैठा इश्क: डॉ. इकबाल दुर्रानी
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

READ ALSO

हमारी सेना पूरी तरह चौकस : जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन

नाभा जेल ब्रेक कांड में फरार खालिस्तानी आतंकी कश्मीर सिंह गलवड्डी को एनआईए ने किया गिरफ्तार

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। सामवेद में प्रार्थना है, याचना है, पाकीजगी है, फरियाद है, आत्मसमर्पण है। जब तक दुनिया है, तब तक सामवेद भी रहेगा। इसीलिए मैने सामवेद का अनुवाद करने का फैसला किया, ताकि इसी के साथ मेरा भी अस्तित्व कयामत तक बना रहे। यह बात सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद करने वाले फिल्म लेखक व निर्देशक डॉ. इकबाल दुर्रार्नी ने कही।

आईएएनएस से बात करते हुए डॉ. दुर्रानी ने कहा कि सामवेद में वो अंदाज है, जैसे बंदा खुदा से बातें कर रहा हो कि हे ईश्वर मुझे ज्ञान दे, मुझे आत्मबल दे। मुझे इसमें एक इश्क लगा और एक आशिक को इश्क के अलावा कुछ और नहीं चाहिए। इसका फल मुझे तब मिला जब इसके विमोचन के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुझे मंच पर बुलाया, मेरी प्रशंसा की और मुझे गले लगाकर भाई जैसा प्यार दिया। यह मेरे लिए गर्व की बात है।

इकबाल दुर्रानी ने बताया कि सामवेद का हिंदी व उर्दू में अनुवाद करने में मुझे 6 साल लग गए, लेकिन कुदरत 50 साल पहले से इसे कराना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मेरे दादाजी संस्कृत के टीचर थे। जब मैं उनके स्कूल में जाता था, तो वहां लोग मुझे पंडित जी का पोता कहते थे। संस्कृत मेरे डीएनए में आ गया था। कुदरत को मुझसे सामवेद का अनुवाद कराना था। मेरा गांव मंदार पर्वत के सामने है। उल्लेखनीय है कि मंदार पर्वत वह पर्वत है, जिससे समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ऐरावत हाथी, लक्ष्मी जी, विष आदि निकला, तो वह भी मेरा एक प्रेरणास्रोत बन गया।

फिर वही हुआ मैं समुंदर के पास चला गया मुंबई, समुद्र मंथन करने। वहां मैंने खूब मंथन किया और मुझे कामयाबी मिली। मेरी जिंदगी ऐसी राहों से गुजरी, जहां धार्मिक कट्टरता से मेरी मुलाकात ही नहीं हुई। पहले ऊपर वाले ने मेरे दिल के जमीर को नरम बनाया, फिर उसी ने सामवेद लिखने का बीज मेरे अंदर डाल दिया।

डॉ. दुर्रानी ने कहा, मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि मैं सामवेद लिख पाऊंगा या लिखूंगा, ऊपर वाले की मर्जी थी कि उसने मेरे दिल में यह बात डाल दी और उसने यह काम मुझसे करवा लिया। साढ़े 5 साल तक मैंने सामवेद पर काम किया। फिर जब मैंने सामवेद का हिंदी और उर्दू में अनुवाद कर लिया, तो मैंने सोचा इसको किसी प्रकाशक को दे दिया जाए। वह इसे छापकर मार्केट में उतार देगा और 400-500 सौ रुपए में बिकने लगेगी। लेकिन मेरे दिल ने यह बात गवारा नहीं समझा।

उन्होंने कहा, मैं फिल्म का आदमी हूं, तो अच्छे से सोचता हूं कि बड़ा हीरो हो, अच्छी सी लोकेशन हो, अच्छे से सजाओ, अच्छे से प्रजेंट करो, तो यह बात मेरे अंदर के फिल्मी आदमी ने सोचा कि इसको इतने अच्छे से प्रजेंट करो कि दुनिया में इतना खूबसूरत सामवेद किसी ने ना प्रजेंट किया हो। इसलिए मैंने तस्वीरों के साथ इसको डिजाइन किया, ताकि लोग इन तस्वीरों के बहाने किताबों के पन्नों को पलटे, देखें, पढ़ें जिससे लोगों को महसूस हो कि इकबाल दुर्रानी सिर्फ एक लेखक ही नहीं, बल्कि आशिक भी है। जैसे आशिक अपने महबूब को सजाता है, उसी तरह मैंने सामवेद को सजाया है।

अब सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद का विमोचन भी हो गया और यह बाजार में भी आ जाएगा। उन्होंने बताया कि हम इसको प्रति एपिसोड के हिसाब से शूट भी करने वाले हैं, ताकि नई पीढ़ी यू-ट्यूब पर हर दिन 2 एपिसोड देखे।

डॉ. दुर्रानी ने कहा कि जब मैंने सामवेद लिखना शुरू किया, तो फिल्म वाले लोगों ने सोचा कि मैंने ऊपर वाले का काम करना शुरू कर दिया है, अब तो मैं स्क्रिप्ट लिखूंगा नहीं, तो लोगों ने आना बंद कर दिया। साढ़े पांच साल तक मेरा कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं रहा, जबकि मैं हर साल तीन-चार फिल्म लिखकर अच्छा पैसा कमा सकता था। लेकिन मैंने यह सोचकर वह छोड़ दिया कि अगर मैंने फिल्में लिख भी दी, तो यह आठ या दस साल में मर जाएगी। लेकिन अगर मैंने सामवेद पर काम कर लिया तो सामवेद कयामत तक नहीं मरेगा और मैंने यह काम कर लिया तो मेरा नाम भी कयामत तक जिंदा रहेगा, तो मैं जिंदगी की चाह में सामवेद से इश्क कर बैठा।

–आईएएनएस

एमजीएच/सीबीटी

Related Posts

ताज़ा समाचार

हमारी सेना पूरी तरह चौकस : जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन

May 12, 2025
ताज़ा समाचार

नाभा जेल ब्रेक कांड में फरार खालिस्तानी आतंकी कश्मीर सिंह गलवड्डी को एनआईए ने किया गिरफ्तार

May 12, 2025
ताज़ा समाचार

भारत-पाकिस्तान सीजफायर पर पीएम मोदी को बयान देना चाहिए: इमरान मसूद

May 12, 2025
ताज़ा समाचार

ऑपरेशन सिंदूर : भारत की सैन्य ताकत, रणनीतिक मजबूती और आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की मिसाल

May 12, 2025
ताज़ा समाचार

आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई जारी रहेगी : सीएम माणिक साहा

May 12, 2025
ताज़ा समाचार

हिंदुस्तान की आर्मी बहुत मजबूत है, पूरी दुनिया ने इसे देखा: रिटायर्ड मेजर जनरल पीके सेहगल

May 12, 2025
Next Post
शामली : नहर के पास बोरे में मिला युवती का शव

शामली : नहर के पास बोरे में मिला युवती का शव

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

February 12, 2023
बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

February 12, 2023
चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

February 12, 2023

बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाढ़ जैसे हालात, शहर में घुसने लगा नदी का पानी

August 26, 2023

4 में से 1 शख्स बिना डॉक्टर के पर्चे के वेट लॉस ड्रग्स का उपयोग करने पर करता है विचार : अध्ययन

September 17, 2024

EDITOR'S PICK

स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की जांच के लिए यूपी सरकार नीदरलैंड के मॉडल का करेगी पालन

स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की जांच के लिए यूपी सरकार नीदरलैंड के मॉडल का करेगी पालन

February 20, 2023
झारखंड के गुमला में दो स्कूली छात्राओं से गैंगरेप, तीन किशोर गिरफ्तार

झारखंड के गुमला में दो स्कूली छात्राओं से गैंगरेप, तीन किशोर गिरफ्तार

March 13, 2024

मीडिया और मनोरंजन उद्योग रोजगार का बहुत बड़ा साधन : अश्विनी वैष्णव

July 13, 2024
आईसीसी वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर 2022 अवार्ड के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम

आईसीसी वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर 2022 अवार्ड के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम

December 29, 2022
ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

081025
Total views : 5871710
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In