शाजापुर. शाजापुर में एक गर्भवती आदिवासी महिला को जिला अस्पताल में उचित उपचार नहीं मिला, जिसके कारण उसे सड़क पर ही अपनी बच्ची को जन्म देना पड़ा। इस घटना ने अस्पताल प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है और यह शहर में चर्चा का विषय बनी हुई है।
मिली जानकारी के अनुसार, ग्राम मदाना गोशाला के मजदूर नरेंद्र आदिवासी की पत्नी नेहा को सुबह 10 बजे प्रसव पीड़ा हुई। उन्हें तुरंत 108 एम्बुलेंस से बोलाई अस्पताल ले जाया गया, जहाँ से उन्हें शाजापुर के जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया।
नरेंद्र का आरोप है कि जिला अस्पताल में डॉक्टर और नर्सों ने नेहा की स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया। सोनोग्राफी और अन्य जांचों के नाम पर उन्हें अस्पताल परिसर में दो घंटे से ज्यादा समय तक भटकाया जाता रहा, लेकिन कोई प्राथमिक उपचार नहीं दिया गया।
जब नेहा की हालत बिगड़ने लगी, तो नरेंद्र अपनी पत्नी को बस से वापस घर ले जाने लगे। गुलाना में बस से उतरते ही नेहा की प्रसव पीड़ा असहनीय हो गई और उन्होंने सड़क पर ही बच्ची को जन्म दिया। इस दौरान स्थानीय महिलाओं ने पॉलिथीन का घेरा बनाकर उनकी मदद की।
घटना की सूचना मिलने पर ग्रामीणों ने मां और नवजात को गुलाना के प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। डॉक्टरों के अनुसार, मां और बच्ची दोनों की हालत अब स्थिर है। इस घटना ने एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।