नई दिल्ली, 22 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ओडिशा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (ओएटी) को समाप्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि इसके खत्म होने से वादकारियों के पास विवाद का निर्णय करने के लिए कोई उपाय या मंच नहीं रह जाएगा और इससे न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार का भी हनन नहीं होता है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा : 2 अगस्त, 2019 की अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती, जिसके द्वारा ओएटी को समाप्त कर दिया गया था, को खारिज कर दिया गया है। उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की जाएगी .. अपील खारिज की जाती है।
पीठ ने कहा कि ओएटी को खत्म करने से पहले न्यायिक प्रभाव का आकलन करने में केंद्र सरकार की विफलता ओएटी को खत्म करने के उसके फैसले को गलत नहीं साबित करती है, क्योंकि रोजर मैथ्यू के निर्देश सामान्य प्रकृति के थे और विशिष्ट न्यायाधिकरणों को खत्म करने पर रोक नहीं लगाते थे।
पीठ ने कहा कि यह आदेश वादियों को बिना किसी उपाय या विवादों के निपटारे के लिए एक मंच के बिना नहीं छोड़ता है, क्योंकि उच्च न्यायालय उन मामलों की सुनवाई के लिए उपलब्ध है जो इसके उन्मूलन से पहले ओएटी के समक्ष लंबित थे।
इसमें कहा गया है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं किया गया, क्योंकि ओएटी को खत्म करने के फैसले से प्रभावित लोगों के वर्ग को सुनवाई का अधिकार नहीं था। पीठ ने कहा, बड़े पैमाने पर जनता (या इसके कुछ वर्गो) को नीतिगत निर्णय लेने से पहले सुनवाई का अधिकार नहीं था।
शीर्ष अदालत ने ओडिशा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उड़ीसा उच्च न्यायालय के 7 जून, 2021 के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें ओएटी को समाप्त करने को बरकरार रखा गया था।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 323-ए का हवाला देते हुए कहा कि यह केंद्र को ऐसे न्यायाधिकरणों को समाप्त करने से नहीं रोकता है, क्योंकि यह एक सक्षम प्रावधान है जो सरकार को अपने विवेक से एक प्रशासनिक न्यायाधिकरण स्थापित करने की शक्ति प्रदान करता है।
पीठ ने अपने 77 पृष्ठ के फैसले में कहा : प्रशासनिक न्यायाधिकरण स्थापित करने की शक्ति का कानूनी और तथ्यात्मक संदर्भ इस शक्ति का उद्देश्य और विधायिका का इरादा यह स्थापित करता है कि प्रशासनिक द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करने का कोई कर्तव्य नहीं है।
इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने अपनी शक्तियों का वैध प्रयोग करते हुए काम किया, जब उसने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल अधिनियम की धारा 4 (2) के साथ सामान्य खंड अधिनियम की धारा 21 को ओएटी की स्थापना की अधिसूचना को रद्द करने के लिए पढ़ा, क्योंकि ओएटी की स्थापना का निर्णय एक प्रशासनिक निर्णय था न कि अर्ध-न्यायिक निर्णय।
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ओएटी की स्थापना के बाद केंद्र सरकार फंक्टस ऑफिसियो नहीं बन गई, क्योंकि सिद्धांत आमतौर पर उन मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, जहां सरकार नीति बना रही है और लागू कर रही है।
–आईएएनएस
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