भोपाल. मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत बड़ी प्रशासनिक चूक सामने आई है. योजनाओं की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बिना गांवों का दौरा किए कागजों पर तैयार कर दी गई. इस लापरवाही के कारण योजना की लागत अनावश्यक रूप से बढ़ गई और केंद्र सरकार ने अतिरिक्त राशि देने से इनकार कर दिया. इसके चलते प्रदेश सरकार को 2,813 करोड़ रुपये अपने खजाने से खर्च करने पड़े.
141 इंजीनियरों को नोटिस
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (PHE) ने इस गंभीर गड़बड़ी में 141 इंजीनियरों को नोटिस जारी किए हैं. इन पर आरोप है कि इन्होंने बिना फील्ड विजिट और साइट निरीक्षण के बंद कमरों में बैठकर डीपीआर तैयार की. इनमें कुछ इंजीनियर रिटायर हो चुके हैं, लेकिन उन्हें भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है.
19,000 में से 8,358 योजनाओं में गड़बड़ी
राज्य में जल जीवन मिशन के अंतर्गत करीब 19,000 योजनाएं बनाई गई थीं. जांच में सामने आया कि 8,358 योजनाओं में डीपीआर का आकलन गलत किया गया. खर्च का अनुमान जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाता, जिससे योजना की लागत बेवजह बढ़ी. अब राज्य सरकार ने कैबिनेट मंजूरी लेकर अतिरिक्त राशि वहन करने का निर्णय लिया है, ताकि 7 लाख घरों तक नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य प्रभावित न हो.
केंद्र सरकार ने क्या कहा?
केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि बढ़ी हुई लागत की भरपाई वह नहीं करेगी, क्योंकि डीपीआर में तकनीकी और प्रक्रियागत खामियां हैं. यह फैसला जल जीवन मिशन जैसी राष्ट्रीय योजना में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है.
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आगे क्या कार्रवाई होगी?
सूत्रों के अनुसार, इन इंजीनियरों पर विभागीय जांच के बाद कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है. साथ ही भविष्य में ऐसी लापरवाही से बचने के लिए डीपीआर तैयार करने की प्रक्रिया में बदलाव की संभावना भी जताई जा रही है.