शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तर्पण से पितर तृप्त होते हैं और पापों का नाश होता है। यदि पितरों को तर्पण न किया जाए, तो वे अपने वंशजों के शरीर से रक्तपान करते हैं।
श्लोक:
“अतर्पिताः शरीराद्रुधिरं पिबन्ति।”
— (मनुस्मृति)
इसलिए, गृहस्थ को नित्य तर्पण करना अनिवार्य बताया गया है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं, पितृ ऋण चुकाने की आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
तर्पण नित्यकर्म है, लेकिन तिल तर्पण के हैं विशेष नियम
हालाँकि तर्पण एक नित्यकर्म है, लेकिन तिल से तर्पण (तिल तर्पण) करने के संबंध में शास्त्रों में निषेध भी बताए गए हैं, जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
किन दिनों में तिल तर्पण वर्जित है?
*धर्मसिंधु* एवं *आचारमयुख* जैसे ग्रंथों के अनुसार निम्न दिनों में तिल तर्पण, पिंडदान और मृत्तिका स्नान वर्जित हैं:
* रविवार, मंगलवार, शुक्रवार
* प्रतिपदा, षष्ठी, सप्तमी, एकादशी, त्रयोदशी तिथियाँ
* भरणी, कृतिका, मघा नक्षत्र
* रात्रि समय, संधिकाल
* जन्म नक्षत्र दिवस
* शुभ कार्य जैसे विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि के दिन
* दूसरे के घर (परगृह) में
* युगादि, मन्वादि, गजच्छाया योग, अयन संक्रांति
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श्लोक:
*“रविभौमभृगुवारेषु प्रतिपत्षष्ठयेकादशी सप्तमी त्रयोदशी…”*
कब किया जा सकता है तिल तर्पण (अपवाद)?
कुछ विशेष अवसरों पर, उपरोक्त निषेध होते हुए भी तिल तर्पण करना शास्त्रसम्मत है:
* ग्रहण काल (सूर्य/चंद्र)
* अमावस्या
* संक्रांति
* पितृश्राद्ध
* व्यतिपात योग
श्लोक (आपस्तंब धर्मसूत्र):
*“उपरागे पितृश्राद्धे पातेऽमायां च संक्रमे। निषेधेऽपि ह सर्वत्र तिलैस्तर्पणमाचरेत्॥”*
कब-कब आवश्यक है तिल तर्पण?
* दर्शश्राद्ध: श्राद्ध से पहले तिल तर्पण करें
* महालय पक्ष: द्वितीय दिवस पर तिल तर्पण
* गयाश्राद्ध
* क्षय तिथि का श्राद्ध
* तीर्थश्राद्ध में सभी पितरों के उद्देश्य से पहले तर्पण करें
विवाह या अन्य मांगलिक संस्कारों के बाद नियम
मांगलिक कार्यों के बाद एक निर्धारित अवधि तक तिल तर्पण वर्जित रहता है:
| संस्कार | निषेध अवधि |
| विवाह | 1 वर्ष |
| यज्ञोपवीत | 6 माह |
| चौल | 3 माह |
| अन्य संस्कार | 1 माह या 15 दिन |
धर्मसिंधु श्लोक:
विवाह व्रत चूड़ासु वर्षमर्धं तदर्धकम् अन्यत्र…
पुत्र धर्म की सर्वोच्चता
यद्यपि उपर्युक्त निषेध हैं, लेकिन महालय पक्ष, गयाश्राद्ध, या माता-पिता की मृत्यु तिथि पर विवाहित पुरुष को भी तर्पण व पिंडदान करने का अधिकार और कर्तव्य है।
पुत्र धर्म को शास्त्रों में सर्वोच्च माना गया है।
“पुत्र एव पितॄणां त्रायते इति पुत्रः।”
(निरुक्त)
व्यावहारिक दृष्टिकोण
आजकल संयुक्त परिवारों में प्रति वर्ष कोई न कोई शुभ कार्य होता रहता है। ऐसे में यदि तिल तर्पण की निषेध तिथियों के कारण हर बार महालय या पितृ पक्ष में तर्पण रोका जाए, तो यह धीरे-धीरे कुल परंपरा के क्षरण का कारण बन सकता है।