तिरुवनंतपुरम, 16 सितंबर (आईएएनएस)। केरल में छात्रों की आत्महत्या दर ने बड़ी समस्या की ओर ध्यान खींचा है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में करीब 50 फीसदी मामले बढ़े हैं। इसने स्कूली बच्चों के मेंटल हेल्थ को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
राज्य विधानसभा में प्रस्तुत आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2021 और मार्च 2025 के बीच केरल में 39,962 लोगों ने आत्महत्या की। यह संख्या 2021 में 6,227 थी, जो 2023 में बढ़कर 10,994 हो गई।
हालांकि इन सभी मौतों में छात्र शामिल नहीं थे, लेकिन यह प्रवृत्ति एक राष्ट्रव्यापी संकट को दर्शाती है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में पूरे भारत में 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की थी।
केरल में, कुछ जिले विशेष रूप से प्रभावित हैं। अकेले कोझीकोड में 2022-23 शैक्षणिक वर्ष में 53 छात्रों ने आत्महत्या की। मनोवैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि समय पर परामर्श और प्रभावी स्कूल-आधारित सहायता से इनमें से कुछ को टाला जा सकता था।
पलक्कड़ के श्रीकृष्णपुरम की कक्षा 9 की छात्र, आशीर्नंदा का मामला, इन आंकड़ों के पीछे छिपी मानवीय क्षति को उजागर करता है। कथित तौर पर शिक्षकों द्वारा बार-बार उपहास उड़ाए जाने के बाद, उसने घर पर ही अपनी जान ले ली, और अपने पीछे अधूरे चित्र और एक नई स्कूल रिकॉर्ड बुक छोड़ गई। उसके माता-पिता, प्रशांत और सजीता, अपनी बेटी के लिए अब भी न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
उसके पिता ने कहा, “वह एक प्रतिभाशाली बच्ची थी जिसके सपने थे। लेकिन उसके अपमान ने उसका हौसला तोड़ दिया।”
इस संकट से निपटने के लिए, केरल सरकार ने 3,000 शिक्षकों को मेंटल हेल्थ काउंसलर के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए एक कार्यक्रम का ऐलान किया है। शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने कहा कि इस पहल का उद्देश्य शिक्षकों को संकट के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने, बुनियादी परामर्श प्रदान करने और जरूरत पड़ने पर छात्रों को पेशेवर सेवाओं से जोड़ने में मदद करना है।
विशेषज्ञ इस वृद्धि को बढ़ते शैक्षणिक और सामाजिक दबावों, नाजुक पारिवारिक माहौल और युवाओं की उभरती मनोवैज्ञानिक जरूरतों को पूरा करने में असमर्थता से जोड़ते हैं।
हालांकि, विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि ज्यादातर स्कूलों में अभी भी पेशेवर काउंसलर की कमी है, और मौजूदा कार्यक्रम कमजोर समन्वय और खराब रेफरल सिस्टम के कारण बाधित हैं।
बाल अधिकार कार्यकर्ता उत्पीड़न के मामलों में जवाबदेही की आवश्यकता पर भी जोर देते हैं। एक कार्यकर्ता ने कहा, “आशीर्वाद जैसे पीड़ितों के लिए न्याय जरूरी है, लेकिन साथ ही सुरक्षा उपाय भी उतने ही जरूरी हैं ताकि कोई भी बच्चा खुद को परित्यक्त या अपमानित महसूस न करे।”
–आईएएनएस
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