छतरपुर. सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदेश के खजुराहो स्मारक समूह के जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फुट ऊंची सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया है।
इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकार क्षेत्र में आता है, न कि न्यायालय के।
सुनवाई के दौरान सीजेआई बीआर गवई ने कहा आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं, तो उनसे प्रार्थना कीजिए यह एक पुरातात्विक स्थल है और उसे ही इसकी अनुमति देनी होगी। दरअसल राकेश दलाल द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया कि मुगल आक्रमणों के दौरान मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।
याचिका के अनुसार सरकार से इसे पुनर्स्थापित कराने के लिए बार-बार अनुरोध करने के बावजूद यह उसी अवस्था में बनी हुई है। याचिकाकर्ता राकेश दलाल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला निराशाजनक है।
कोर्ट सुनवाई नहीं करता है, तो मैं भगवान की मूर्ति पर अपना शीश चढाउंगा। देश में भाजना की सरकार होने के बावजूद मंदिरों की यह स्थिति बेहद दुखद है। इसे लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया है। गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन भी दिया था।
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याचिका में मरम्मत का हवाला
याचिकाकर्ता के अनुसार इसमें मूलरुप से चंद्रवंशी राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो के मंदिरों के इतिहास का वर्णन किया गया है। साथ ही आरोप लगाया गया है कि औपनिवेशिक उपेक्षा और स्वतंत्रता के बावजूद निष्क्रियता के कारण आजादी के 77 साल बाद भी मूर्ति की मरम्मत नहीं हो पाई है। याचिकाकर्ता ने मूर्ति को मुगल आक्रमणों में क्षतिग्रस्त बताया और सरकार से पुनर्स्थापना की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मूर्ति की पुनर्स्थापना से इंकार करना श्रद्धालुओं के पूजा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में मंदिर से संबंधित विरोध प्रदर्शनों, ज्ञापनों और अभियानों को उजागर किया गया, जिनका कोई जवाब नहीं मिला। न्यायालय ने इस मामले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकार क्षेत्र में बताया और हस्तक्षेप से इंकार कर दिया।