नई दिल्ली, 19 सितंबर (आईएएनएस)। दक्षिण का सिनेमा मौजूदा समय में सिर्फ संपूर्ण भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में छाया हुआ है। दक्षिण की फिल्मों की बुनियाद को मजबूत करने में जिन अभिनेताओं का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, उनमें ए. नागेश्वर राव का नाम प्रमुख है। नागेश्वर राव ने तेलुगू और तमिल फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से अमिट छाप छोड़ी है।
ए. नागेश्वर राव का पूरा नाम अक्किनेनी नागेश्वर राव है। उन्हें ‘एएनआर’ के नाम से भी जाना जाता है। नागेश्वर राव का जन्म 20 सितंबर 1923 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के रामपुरम गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा सिर्फ तीसरी कक्षा तक ही हो पाई। अभिनय से उनका लगाव ऐसा था कि सिर्फ 10 साल की उम्र में रंगमंच पर सक्रिय हो गए। उस समय महिलाओं के अभिनय पर प्रतिबंध के कारण वे स्त्री पात्र निभाते थे।
1941 में तेलुगू फिल्म ‘धर्मपत्नी’से सिनेमा में प्रवेश करने वाले ‘एएनआर’ ने 73 वर्षों के अपने करियर में 255 से अधिक फिल्मों में काम किया। तमिल सिनेमा में उनका प्रवेश 1950 के दशक में हुआ। ‘विप्र नारायण’ उनकी पहली प्रमुख तमिल फिल्म थी, जो 1954 में रिलीज हुई थी। फिल्म में उन्होंने तमिल संत विप्र नारायण की जीवनी पर आधारित भूमिका निभाई थी। तमिल, तेलुगू के अलावा उन्होंने हिंदी और कन्नड़ भाषा की फिल्मों में भी काम किया।
1956 में ‘तेनाली रामकृष्ण’ (तमिल संस्करण) में उन्होंने प्रसिद्ध तेलुगू कवि तेनाली रामकृष्ण का किरदार चित्रित किया। फिल्म को ऑल इंडिया सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट फॉर बेस्ट फीचर सम्मानित किया गया था।
अक्किनेनी नागेश्वर राव की अभिनय शैली, नृत्य, संवाद और भाव-भंगिमाओं का संतुलन दर्शकों को रोमांचित करती थी। वह बेहतरीन अभिनेता के साथ-साथ निर्माता भी थे। 1970 के दशक में उन्होंने तेलुगू फिल्म उद्योग को मद्रास (अब चेन्नई) से हैदराबाद स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे तमिलनाडु के सिनेमा हब पर दबाव कम हुआ।
उनकी कंपनी ‘अन्नपूर्णा स्टूडियोज’ ने कई तमिल-तेलुगू फिल्मों का सह निर्माण किया। 1985 में स्थापित इस स्टूडियो ने तमिल फिल्मों के तकनीकी पक्ष को मजबूत किया। उनकी तमिल फिल्मों में ‘मिस्सम्मा’ (1955) का तमिल रीमेक ‘मिसियम्मा’ भी लोकप्रिय हुआ, जहां उन्होंने सावित्री के साथ रोमांटिक हीरो की भूमिका निभाई। ‘देवदासु’ (1953) का तमिल प्रभाव भी रहा, जो तमिल सिनेमा में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कहानियों को लोकप्रिय बनाने में सहायक सिद्ध हुआ।
उनकी लोकप्रिय फिल्मों में लैला मजनू (1949), देवदासु (1953), अनारकली (1955), बतासारी (1961), मूगा मनासुलु (1964), प्रेमा नगर (1971), प्रेमाभिषेकम (1981), मेघसंदेसम (1982), बलाराजू (1948), कीलू गुर्रम (1949), अर्धांगी (1955), डोंगा रामुडु (1955), मंगल्या बालम (1958), गुंडम्मा कथा (1962), डॉक्टर चक्रवर्ती (1964), धर्म दाता (1970), और दशहरा बुल्लोडु (1971) शामिल हैं।
राव को 1992 का तमिलनाडु स्टेट फिल्म ऑनरेरी अवॉर्ड अरिग्नार अन्ना अवॉर्ड मिला। भारत सरकार ने उन्हें 1968 में पद्मश्री, 1988 में पद्म भूषण, 1990 में दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड और 2011 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।
उनका परिवार मजबूती से दक्षिण की सिनेमा में सक्रिय है। पुत्र नागार्जुन, पोते नागा चैतन्य व अखिल अक्किनेनी दक्षिण सिनेमा के बड़े सितारे हैं और राव की विरासत को बढ़ा रहे हैं। 2014 में रिलीज हुई उनकी अंतिम फिल्म ‘मनम’ में तीनों पीढ़ियां एक साथ दिखीं थी। 22 जनवरी 2014 को उनका निधन हो गया था।
–आईएएनएस
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