नई दिल्ली. केंद्र सरकार की तरफ से जीएसटी स्लैब में किए गए सुधार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने मंगलवार को चापलूसी करार दिया। उन्होंने कहा कि हमने केंद्र सरकार को आज से 10 साल पहले ही यह कदम उठाने का सुझाव दिया था।
मणिशंकर अय्यर ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में कहा कि आज से 10 साल पहले 2015 में जब इस संबंध में मसौदा पेश किया गया था, तब राज्यसभा की ओर से एक सेलेक्ट कमेटी का गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता भूपेंद्र यादव को दी गई थी। इसमें कांग्रेस के तीन सदस्य भी शामिल थे, जिसमें मधुसूदन मिस्त्री, मुंगेकर साहब और तीसरा मैं खुद था।
उस समय हमने यह समझाने की कोशिश की थी कि जो मसौदा पेश किया गया, उसमें बहुत खामियां हैं। सबसे बड़ी खामी यह थी कि इसमें बहुत सारे स्लैब थे। इसके अलावा इसमें टैक्स निर्धारित करने का कोई निश्चित पैमाना भी नहीं था।
मणिशंकर अय्यर ने कहा कि उस वक्त इन तमाम विसंगतियों को गिनाने के बावजूद भी केंद्र सरकार ने हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया था और आज भाजपा सरकार कह रही है कि हमने जीएसटी स्लैब में सुधार कर दिया है। अगर हमारी बात इन लोगों ने 10 साल पहले सुन ली होती, तो कब का यह फैसला ले लिया जाता। अब सरकार दावा कर रही है कि हमने जीएसटी स्लैब की एक सीमा निर्धारित कर दी है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि अब इन 10 वर्षों में स्थिति ऐसी हो चुकी है कि छोटे कारोबारियों की हालत पूरी तरह से पस्त हो चुकी है। अब ये लोग कह रहे हैं कि हमने जीएसटी स्लैब में 18 फीसदी का टैक्स निर्धारित कर दिया है। यह हमारी तरफ से देश की जनता को दिया गया तोहफा है। मणिशंकर अय्यर ने कहा कि अगर आपको देश की जनता को तोहफा देना है, तो यह तोहफा 10 साल पहले ही दे देते।
उन्होंने कहा कि तंबाकू, बिजली और शराब में आप टैक्स लगा दीजिए, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी अन्य राज्य में कुछ और लिया जा रहा है, तो किसी दूसरे राज्य में कुछ और लिया जा रहा है। इसके बाद हमने केंद्र सरकार से पंचायतों और नगर पालिका के लिए टैक्स का कुछ हिस्सा आरक्षित करने की मांग की थी, लेकिन भाजपा सरकार ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया।
कांग्रेस नेता ने कहा कि अभी एनके सिंह की 15वीं फाइनेंस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कर का एक हिस्सा नगर पालिका और पंचायतों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए।
इसके बाद हमने कहा था कि अगर कर के संबंध में किसी भी प्रकार का मतभेद आए, तो उसे जीएसटी काउंसिल में भेजा जाए, लेकिन अफसोस की बात है कि काउंसिल में बैठे लोगों के बीच में मतभेद है, तो ऐसी स्थिति में फिर क्या किया जा सकता है। एक कहावत है कि आप अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं बन सकते हैं। मौजूदा समय में जीएसटी काउंसिल में कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है।
उन्होंने कहा कि हमने 2011 में कहा था कि ‘जीएसटी डिस्प्यूट रेजुलेशन काउंसिल’ बनाया जाए। इसकी हमने दोबारा सिफारिश की, लेकिन इस पर किसी भी प्रकार का विचार नहीं किया गया। इसके बाद हमने कहा था कि केंद्र के पास ज्यादा शक्ति नहीं हो, इसके लिए 75 फीसदी वोट की शक्ति राज्य सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाए।
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इसके बाद 25 फीसदी वोट आप अपने पास रखिए, लेकिन हमारे द्वारा दिए गए 5-6 सुझावों में उन्होंने किसी पर भी विचार करना जरूरी नहीं समझा। जिसका नतीजा यह हुआ कि लोगों को बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा और अब ये लोग कह रहे हैं कि हमने कर सुधार के संबंध में बड़ा कदम उठाया है, जबकि इन लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया है, इन्होंने सिर्फ हमारे द्वारा सुझाए गए सुझाव को अपनाया है।