उमरिया: जिले में अवैध रेत कारोबार चरम पर है। पाली–घुनघुटी क्षेत्र की नदियाँ और नाले खनन माफियाओं के निशाने पर हैं। ओदरी, गाहिरा नाला, बेली, चौरी, हथपुर, चंदपुर और कन्नबाहर जैसे गांवों में रात ढलते ही ट्रैक्टरों की कतार निकल पड़ती है। विभागों के रिकार्ड में जब्ती और चालानी कार्रवाई दर्ज होती है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि घुनघुटी चौकी, जहाँ से सबसे अधिक रेत की आवाजाही होती है, वहाँ की कार्रवाई पूरी तरह शून्य है।
चौकी प्रभारी पर उठे सवाल – स्थानीय ग्रामीणों और सूत्रों का कहना है कि चौकी में वर्षों से जमे कुछ नामची कर्मचारियों के मकड़जाल से इस खेल की सबसे बड़ी वजह हैं। लंबे समय तक एक ही स्थान पर टिके रहना और उसी दौरान अवैध कारोबार का खुलेआम चलना कई सवाल खड़े करता है। ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि देशभक्ति और जनसेवा का मुखौटा ओढ़े इन कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर कारोबार संभव ही नहीं।
क्या सत्ता धारी नेताओं का दबाव – चौकी की निष्क्रियता को लेकर यह चर्चा आम हो चुकी है कि सत्ता धारी नेताओं के दबाव में पुलिस चुप्पी साधे बैठी है। सूत्र बताते हैं कि राजनीतिक संरक्षण मिलने की वजह से अवैध कारोबारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। यही कारण है कि जब खनिज, राजस्व और परिवहन विभाग कभी–कभार कार्रवाई करते भी हैं, तो उसका असर ज्यादा दिन तक नहीं टिकता।
ग्रामीणों का आक्रोश – गांव-गांव में लोग पूछ रहे हैं, जब खनिज और राजस्व विभाग ट्रैक्टर–डंपर जब्त कर सकते हैं तो पुलिस क्यों मौन है, क्या कानून सबके लिए बराबर नहीं, क्या चौकी की खामोशी नेताओं के इशारे पर है?
ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस अगर चाह ले तो इस कारोबार पर तत्काल अंकुश लगाया जा सकता है, लेकिन मौजूदा हालात यही बताते हैं कि चौकी स्वयं इस खेल की संरक्षक बन चुकी है।
पर्यावरण और भविष्य पर संकट
अवैध रेत उत्खनन केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि पर्यावरण पर सीधा हमला है। नदियों का स्वरूप बदल रहा है, जलस्रोत सूख रहे हैं और भूजल स्तर गिरता जा रहा है। विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगर यह खेल नहीं रुका तो आने वाले समय में बाढ़ और सूखे जैसी आपदाएँ बढ़ेंगी और ग्रामीण जीवन संकट में फँस जाएगा।
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सरकार और प्रशासन की जवाबदेही जरूरी
अब सवाल सीधे-सीधे सरकार और प्रशासन की नीयत पर उठ रहे हैं। जब जिले के अन्य विभाग कार्रवाई कर रहे हैं, तो घुनघुटी चौकी क्यों निष्क्रिय है? यह चुप्पी महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत और दबाव की गहरी कहानी बयां करती है।
स्पष्ट है कि अगर प्रशासन ने समय रहते सख्त और ईमानदार कार्रवाई नहीं की, तो रेत माफियाओं का यह साम्राज्य और मजबूत होगा तथा जनता को इसकी कीमत पर्यावरणीय संकट और सामाजिक अव्यवस्था के रूप में चुकानी पड़ेगी।