वृंदावन, 27 सितंबर (आईएएनएस)। नवरात्र का पर्व शक्ति की साधना और देवी मां की आराधना का प्रतीक है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व है। मां कात्यायनी को साहस और विजय की देवी माना जाता है। मान्यता है कि इनकी आराधना से हर संकट दूर होता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
मां कात्यायनी का प्रसिद्ध मंदिर भगवान श्री राधा-कृष्ण की नगरी वृंदावन में स्थित है। वृंदावन के राधा बाग इलाके में स्थित कात्यायनी पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहीं माता सती के केश गिरे थे। तभी से यह स्थल शक्ति आराधना का पवित्र केंद्र बन गया और इसे शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त हुआ।
मान्यता है कि वृंदावन के कात्यायनी पीठ में मां कात्यायनी के दर्शन और पूजा करने से भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है। विशेषकर अविवाहित युवक-युवतियां यहां नवरात्र के दिनों में माता की आराधना करते हैं ताकि उन्हें मनचाहा वर या वधु प्राप्त हो सके। यह विश्वास है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
गीता और पुराणों के अनुसार, राधा रानी और वृंदावन की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की इच्छा से मां कात्यायनी की पूजा की थी। मां ने वरदान भी दिया, लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक थीं। ऐसे में भगवान कृष्ण ने वरदान को पूर्ण करने के लिए महारास रचा। शरद पूर्णिमा की रात, यमुना तट पर धवल चांदनी में भगवान कृष्ण ने अपने 16,108 रूप धारण किए और हर गोपी के साथ महारास किया। यह कथा आज भी भक्तों के बीच आस्था और चमत्कार का प्रतीक है।
हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र के अवसर पर कात्यायनी देवी मंदिर के समीप रंग जी के बड़े बगीचे में भव्य मेले का आयोजन होता है। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। खासकर अष्टमी के दिन यहां होने वाली आरती के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगता है। इस आरती को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।
–आईएएनएस
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