नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा में शक्ति की उपासना को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। नवरात्रि के दौरान शक्ति के नौ रूपों की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु 51 शक्तिपीठों में दर्शन के लिए जाते हैं, जो पूरे भारतवर्ष में फैले हुए हैं।
इनमें से कई शक्तिपीठ दक्षिण भारत में स्थित हैं, जो अपनी ऐतिहासिकता, मान्यताओं और भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ, तमिलनाडु के सुदूर दक्षिण में स्थित है। यह वह स्थान है, जहां देवी सती की पीठ गिरी थी। यहां देवी को श्रावणी के नाम से पूजा जाता है, जबकि शिव को निमिष कहा जाता है। यह शक्तिपीठ एक छोटे से टापू पर स्थित है, जो चारों ओर से समुद्र से घिरा है, जिससे इसका दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है। इसे कन्याश्रम या कालिकाश्रम के नाम से भी जाना जाता है।
सुचिन्द्रम शक्तिपीठ, तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में स्थित एक अन्य प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जहां देवी सती के ऊपरी दांत गिरने की मान्यता है। यहां देवी को नारायणी रूप में पूजा जाता है और उनके भैरव को संहार कहा जाता है।
चामुंडेश्वरी शक्तिपीठ, कर्नाटक के मैसूर शहर के निकट चामुंडी पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा के उग्र रूप चामुंडेश्वरी को समर्पित है। यहां यह विश्वास है कि माता सती के बाल इस स्थान पर गिरे थे। यही वह स्थान है, जहां देवी ने महिषासुर का वध किया था। चामुंडेश्वरी देवी मैसूर के वोडेयार राजवंश की कुलदेवी भी हैं। इस कारण यह स्थान ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
विमला शक्तिपीठ, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। मान्यता है कि यहां माता सती की नाभि गिरी थी, और इसी कारण यह स्थान एक प्रमुख शक्तिपीठ बन गया। यहां देवी को विमला या बिराज देवी के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर के पास होने के कारण विशेष महत्व रखता है, जहां यह देवी जगन्नाथ जी की एक महत्वपूर्ण शक्ति मानी जाती हैं।
–आईएएनएस
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