इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन- देश की ऊर्जा आपूर्ति पर सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) की 25 यूनियनों ने 7 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान कर दिया है. यूनियनों ने साफ कर दिया है कि अब उनकी सहनशीलता की सीमा समाप्त हो चुकी है.
यदि प्रबंधन और सरकार ने समय रहते ठोस आश्वासन नहीं दिया तो देशभर की सभी रिफ़ाइनरियाँ, पाइपलाइन, डिपो और फैक्ट्रियाँ पूरी तरह बंद कर दी जाएँगी. यह बंदी सिर्फ प्रशासनिक टकराव नहीं होगी, बल्कि देश की ऊर्जा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को सीधे झटका देने वाली साबित होगी.
भारत प्रतिदिन लगभग 5.5 मिलियन बैरल तेल उत्पाद खपत करता है. इसमें डीजल और पेट्रोल का सबसे बड़ा हिस्सा है. केवल अगस्त माह में ही डीजल की खपत 6.5 मिलियन टन और पेट्रोल की खपत 3.5 मिलियन टन दर्ज की गई थी. IOC अकेले देश की कुल रिफ़ाइनिंग क्षमता का लगभग 31 प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखता है.
कंपनी की 11 रिफ़ाइनरियाँ मिलकर हर साल लगभग 80.7 मिलियन टन ईंधन उत्पादन करती हैं. इसका दैनिक औसत करीब 2.2 लाख टन (लगभग 1.6 मिलियन बैरल) बैठता है. यही कारण है कि यदि IOC का उत्पादन एक दिन भी ठप होता है तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 2000 से 3000 करोड़ रुपये तक का आर्थिक नुकसान होना तय है.
क्यों भड़की यूनियनें – यूनियनों का कहना है कि कर्मचारियों की मांगें वर्षों से लंबित पड़ी हैं. वेतन और भत्तों में सुधार, सेवा सुरक्षा, कैडर पुनर्गठन, पदोन्नति, ठेका प्रथा पर रोक और कार्यस्थल पर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बार-बार ध्यान दिलाने के बावजूद प्रबंधन ने केवल आश्वासन दिए. यूनियन नेताओं ने कहा कि कर्मचारियों के साथ अन्याय अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
यूनियनों का आरोप है कि निजीकरण की नीतियाँ कर्मचारियों को असुरक्षा की ओर धकेल रही हैं. ठेका कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है और स्थायी कर्मियों को हाशिये पर डाला जा रहा है. यह न सिर्फ कर्मचारियों का शोषण है बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति के साथ खिलवाड़ भी है.
बेगूसराय से उठी चेतावनी की गूंज – बेगूसराय में IOC की बरौनी रिफ़ाइनरी देश की प्रमुख उत्पादन इकाइयों में गिनी जाती है. यहाँ से जारी संयुक्त बयान ने पूरे देश में हलचल मचा दी है. पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों की असामान्य भीड़ देखी जा रही है. उपभोक्ता संभावित संकट को देखते हुए अग्रिम ईंधन जमा करने लगे हैं. स्थानीय प्रशासन ने पैनिक खरीद और अवैध भंडारण से बचने की अपील की है, लेकिन आशंका है कि आने वाले दिनों में स्थिति और गंभीर हो सकती है.
संभावित असर – यदि 7 अक्टूबर को हड़ताल लागू होती है तो इसके दूरगामी नतीजे होंगे, परिवहन क्षेत्र पर सीधा असर पड़ेगा. ट्रक, बस, टैक्सी और ऑटो सेवाएँ बाधित होंगी, माल-ढुलाई रुकने से फल, सब्जियाँ, खाद्यान्न और रोज़मर्रा की वस्तुएँ बाजार तक नहीं पहुँच पाएँगी, कृषि कार्य पर गहरा असर होगा. डीजल की कमी से सिंचाई और फसल कटाई प्रभावित होगी, औद्योगिक उत्पादन पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि कच्चे माल की आपूर्ति और तैयार माल की ढुलाई रुक जाएगी, महंगाई का नया दबाव बनेगा. रोज़मर्रा की ज़रूरतों की कीमतें अचानक बढ़ सकती हैं.
विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि यह हड़ताल एक सप्ताह तक खिंचती है तो कुल नुकसान 15 से 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुँच सकता है. इससे सरकार की कर-आय पर भी असर होगा और GDP वृद्धि दर में गिरावट आ सकती है.
सरकार और प्रबंधन की स्थिति – प्रेस रिलीज़ के प्रकाशन तक कंपनी प्रबंधन और सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया था. सूत्रों के मुताबिक, ऊर्जा मंत्रालय स्थिति पर नज़र बनाए हुए है और यूनियनों से वार्ता की कोशिश हो रही है. लेकिन यूनियनों ने साफ कर दिया है कि अब केवल लिखित समझौता ही उन्हें स्वीकार होगा.
सरकार के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है क्योंकि त्योहारी सीजन और खरीफ फसल की कटाई का समय करीब है. ऐसे में ईंधन संकट सीधे तौर पर किसानों, व्यापारियों और आम जनता की मुश्किलें बढ़ा देगा.
राजनीतिक दबाव और सामाजिक चिंता – इस हड़ताल के ऐलान ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है. विपक्षी दल सरकार पर कर्मचारियों की अनदेखी का आरोप लगा रहे हैं. वहीं, आम जनता में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है. पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें और अग्रिम खरीद की होड़ यह संकेत दे रही है कि लोग पहले से संकट की तैयारी करने लगे हैं.
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7 अक्टूबर की प्रस्तावित हड़ताल केवल कर्मचारियों और प्रबंधन का विवाद नहीं है, यह राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा सुरक्षा की सबसे बड़ी परीक्षा है. IOC जैसी विशाल कंपनी की रिफ़ाइनरियाँ ठप होने का मतलब है — ईंधन उत्पादन का एक-तिहाई हिस्सा रुक जाना और प्रतिदिन हजारों करोड़ रुपये का नुकसान.