नासिक, 30 सितंबर (आईएएनएस)। नवरात्रि के पावन अवसर पर दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत शुभ और फलदायक माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि इसके पाठ से भक्तों के जीवन में धन, यश, अन्न और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी रचना कब, कहां और किसने की थी? आइए जानते हैं।
दुर्गा सप्तशती मार्कंडेय पुराण का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसकी रचना महान ऋषि मार्कंडेय ने की थी। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय होते हैं, जिनमें कुल 700 श्लोक शामिल हैं।
मान्यता है कि ऋषि मार्कंडेय सप्तश्रृंगी पर्वत के सामने एक खाई में बैठकर देवी भगवती का मनोरंजन करने के लिए पुराणों का पाठ कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने दुर्गा सप्तशती की रचना की। माना जाता है कि इस दौरान देवी स्वयं उनके श्लोकों को सुन रही थीं।
इस घटना से जुड़ी एक रोचक कथा यह भी है कि महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित श्री सप्तश्रृंगी देवी मंदिर में देवी की मूर्ति थोड़ी सी टेढ़ी है। ऐसा इसलिए क्योंकि देवी ने ऋषि मार्कंडेय के पाठ को ध्यानपूर्वक सुनने के लिए अपना सिर थोड़ा झुकाया था। यह मूर्ति इसी घटना का प्रतीक मानी जाती है।
भगवान ब्रह्मा के कमंडल से उत्पन्न गिरिजा महानदी का स्वरूप सप्तशृंगीदेवी माना जाता है। आदिशक्ति का मूल स्थान माना जाता है। सप्तश्रृंगी माता का यह प्रसिद्द शक्तिपीठ नाशिक से मात्र 65 किलोमीटर दूर, सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में, एक ऊंची सी चोटी पर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा ने शेर पर सवार होकर महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहीं मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
इस मंदिर में मां के दर्शन के लिए पहुंचना है तो आपको 472 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ेगा। सप्तशृंग पर्वत पर मां भवानी के इस अद्भुत मंदिर को सप्तशृंगी देवी के नाम से जानते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 108 शक्तिपीठों में से यह एक है, और इस आदि शक्ति स्वरूपा सप्तशृंगी देवी को ही अर्धशक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। यहां मंदिर में स्थित माता के बारे में कहा जाता है कि वह समय-समय पर अपने चेहरे के भाव भी बदलती रहती हैं।
माता सप्तश्रृंगी देवी का यह मंदिर सात पर्वतों से घिरा हुआ है, इसलिए उन्हें सात पर्वतों की देवी कहा जाता है। मंदिर में पानी के 108 कुंड भी बने हुए हैं।
ऋषि मार्कंडेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती न केवल देवी की शक्ति और शौर्य का स्तवन करती है, बल्कि इसमें जीवन की अनेक कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा भी निहित है। इस ग्रंथ में देवी के कई रूपों का वर्णन है, जैसे महिषासुर मर्दिनी, चंडा-मुंडा वधिनी आदि, जो बुराई के नाश और अच्छाई की स्थापना का प्रतीक हैं।
नवरात्रि के शुभ अवसर पर दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ कर भक्त अपनी जीवन यात्रा को सफल और मंगलमय बना सकते हैं। यह ग्रंथ देवी की अपार शक्ति का अनुभव कराता है और सभी संकटों को दूर करने में समर्थ है। यही कारण है कि दुर्गा सप्तशती का नवरात्रि में पाठ सदियों से निरंतर चलता आ रहा है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
–आईएएनएस
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