नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। मधुमिता बिष्ट को भारत की उन अग्रणी बैडमिंटन खिलाड़ियों में गिना जाता है, जिन्होंने महिलाओं को इस खेल के लिए प्रेरित किया। मधुमिता ने तेज गति, सटीक शॉट और रणनीतिक खेल के दम पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। वह कई प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर युवाओं के लिए प्रेरणा बनीं। मधुमिता साइना नेहवाल और पीवी सिंधु से पहले भारत के बैडमिंटन जगत की पहचान रही हैं।
5 अक्टूबर 1964 को जन्मीं मधुमिता बिष्ट 1992 ओलंपिक गेम्स की एकल स्पर्धा में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र भारतीय महिला शटलर थीं, जिन्हें ‘उत्तराखंड की बैडमिंटन क्वीन’ कहा जाता है।
मधुमिता बिष्ट ने आइसलैंड की एल्सा नीलसन को 11-3, 11-0 से मात देकर अपने अभियान की शानदार शुरुआत की थी। दूसरे गेम में मधुमिता ने अपनी प्रतिद्वंदी को एक भी अंक नहीं लेने दिया था। हालांकि, अगले मुकाबले में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन की जोआन मुगेरिज की कड़ी चुनौती का सामना करते हुए हार का सामना करना पड़ गया।
1997 में सब जूनियर बैडमिंटन चैंपियन बनने वाली मधुमिता बिष्ट 8 बार राष्ट्रीय एकल विजेता रही हैं। इसके अलावा, वह नौ बार युगल विजेता और 12 बार मिश्रित युगल विजेता रहीं।
मधुमिता बिष्ट ने साल 1982 में देश के लिए एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। साल 1998 में वह इस प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं।
उल्लेखनीय है कि साल 1992 में तत्कालीन वर्ल्ड नंबर-2 कुसुमा सरवंता ने मलेशिया ओपन अपने नाम किया था। मधुमिता ने अगले ही सप्ताह उन्हें शिकस्त दे डाली।
‘वर्ल्ड कप’ और ‘उबेर कप’ में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी मधुमिता ने वर्ष 2002 में मधुमिता ने बतौर खिलाड़ी संन्यास का ऐलान किया। इसके बाद उन्होंने सरकारी पर्यवेक्षक के रूप में और हेड कोच के रूप में काम किया। वह भारतीय खेल प्राधिकरण बैडमिंटन एकेडमी के लिए भी कार्य कर चुकी हैं।
मधुमिता बिष्ट के समर्पण और कठिन परिश्रम ने उन्हें खेल जगत में सम्मान दिलाया है। इस खेल में उनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए साल 1982 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा गया, जिसके बाद साल 2006 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
–आईएएनएस
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