जबलपुर, देशबन्धु. कहते हैं न हुनरबाजों, कलाकारों की प्रतिभाओं को पनपने में साधनहीनता आड़े नहीं आती कई प्रतिभाओं में ईश्वर प्रदत्त मेधा होती है जिसे वे अपने अभ्यास से और अधिक प्रखर कर लेते हैं ऐसे ही एक किशोर कलाकार है दीक्षतपुरा जबलपुर निवासी सत्यम पांडे, जिन्हें प्यार से कान्हा कहा जाता है वे दीक्षितपुरा जबलपुर में स्थित एक विद्यालय में इस वर्ष कक्षा बारहवीं में पढ़ रहे हैं.
पढ़ाई के साथ साथ मूर्ति कला में भी माहिर हो गये हैं सुंदर मूर्तियाँ आप लगभग बाल्यकाल से ही बना रहें हैं जब बच्चों की उम्र पढ़ने, लिखने, खेलने मौज मस्ती करने की होती है तब कान्हा यानि सत्यम पांडेय देवी देवताओं की मूर्तियाँ बनाते हैं.
अभी शारदेय नवरात्र के समय माँ भगवती की दो मूर्तियाँ एक बड़ी एक छोटी बनाकर माँ की आराधना में माता-पिता परिवार सहित तल्लीन हैं पिता संजय पांडेय माता ऋचा पांडेय बढ़ाते हैं कि कान्हा का बचपन से ही देवी देवताओं की मूर्तियाँ बनाने का रुझान रहा है.
बाल्यकाल में जब दशहरा देखने जाता था तो वह मूर्तियों को एकटक निहारता रहता था धीरे धीरे उसने स्वयं से मूर्तियाँ बनाना प्रारंभ कर दिया कहीं से भी किसी भी प्रकार का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है मूर्ति के लिये कान्हा स्वयं आवश्यक सामग्री जुटाता है मिट्टी को छानता है चालकर पानी से सान कर स्वयं तैयार करता है फिर मूर्ति बनाता है और रंग रोगन कर मिट्टी के आभूषण भी बना कर पहनाता है माँ भगवती की नौ दिन आराधना के बाद सबके साथ मिलकर मूर्ति विसर्जन के लिये भी स्वयं जाता है.
पहले तो मैंने सुना था कि पड़ोस में ही कोई बच्चा गणेश और दुर्गा की मूर्तियाँ बनाता है मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया विगत वर्ष मेरे घर के सामने मूर्ति विसर्जन ले जाते हुए देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह मूर्ति कान्हा ने बनाई है इस वर्ष स्वयं कान्हा के घर जाकर जब देखा तो आश्चर्य हुआ ख्याल मन में आया कि बचपन से ही बच्चों को यदि पढ़ाई के साथ साथ किसी हुनर में माहिर किया जाये तो निश्चय ही युवा चेतना सार्थकता की दिशा में आगे बढ़कर समाजोपायोगी बन देश दुनियाँ में नाम रोशन कर सकती है