भोपाल, 28 मार्च (आईएएनएस)। कुनो नेशनल पार्क (केएनपी) में पांच साल की मादा नामीबियाई चीता साशा की कथित तौर पर गुर्दे की गंभीर समस्या के कारण मौत हो जाने के बाद सवाल उठ रहे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या बड़ी बिल्ली मध्य प्रदेश में अपने नए आवास में स्थानांतरित होने से पहले गुर्दे के संक्रमण से पीड़ित थी या बाद में संक्रमित हो गई थी।
केएनपी में वन अधिकारियों ने कहा कि 15 अगस्त, 2022 को नामीबिया में परीक्षण किए गए रक्त के नमूनों से पता चला कि भारत आने से पहले साशा को यह बीमारी थी, जिसके बाद से सवाल उठे थे। सवाल है कि अगर साशा पहले से ही गुर्दे के संक्रमण से पीड़ित थी, जैसा कि केएनपी के बयान में दावा किया गया है, तो उसे दुनिया के पहले चीता ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट में शामिल करके भारत क्यों पहुंचाया गया।
केएनपी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक बयान में कहा, जब नामीबिया से साशा की इलाज की हिस्ट्री ली गई तो पता चला कि नामीबिया में 15 अगस्त 22 को किए गए आखिरी ब्लड सैंपल टेस्ट में क्रिएटिनिन लेवल 400 से ज्यादा पाया गया, जिससे पुष्टि होती है कि भारत आने से पहले साशा को यह बीमारी थी।
केएनपी में छोड़े जाने के तीन महीने बाद 22 जनवरी को साशा के स्वास्थ्य इतिहास या रक्त के नमूने की रिपोर्ट की जरूरत पड़ी, क्योंकि वह 22 जनवरी को अपने बड़े बाड़े में अलसाई हुई-सी पड़ी थी। फिर सवाल उठता है कि चीता ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों को नामीबिया के अधिकारियों द्वारा उसके स्वास्थ्य इतिहास से अवगत कराया गया था या नहीं।
अधिकारियों ने दावा किया कि चूंकि केएनपी में (जनवरी से) उसका स्वास्थ्य बिगड़ता पाया गया था, पशु चिकित्सक नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका में अपने समकक्षों के साथ मिलकर उसका इलाज कर रहे थे। अधिकारियों ने यह भी दावा किया कि 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका के पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम, जो 12 दक्षिण अफ्रीकी चीतों के साथ केएनपी पहुंची थी, ने भी साशा की जांच की थी और गुर्दे की गंभीर पुरानी बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद उसे अपेक्षाकृत स्वस्थ रखने के लिए किए जा रहे चिकित्सा उपायों पर संतोष प्रकट किया था।
मामले से वाकिफ एक सूत्र ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, करीब डेढ़ महीने पहले जब साशा की सेहत में मामूली सुधार हुआ, तो मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारी, जो नियमित रूप से साशा की हरकतों पर नजर रख रहे थे, उन्हें उम्मीद थी कि वह अब बच जाएगी।
मध्य प्रदेश के वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दूबे ने पिछले साल सितंबर में राज्य सरकार और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को पत्र लिखा था और केएनपी में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति पर सवाल उठाया था।
दूबे ने कहा, साशा की मौत ने वन और वन्यजीव अधिकारियों के बारे में कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जो इस चीता ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट से जुड़े थे। मैंने केएनपी में नियुक्त कुछ शीर्ष अधिकारियों के बारे में सवाल उठाया था। चीतों को भारत लाने से पहले प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह ने चीतों पर विस्तृत अध्ययन के लिए अफ्रीकी देशों का दौरा किया था और इस उद्देश्य के लिए काफी पैसे का निवेश किया गया, मगर सवाल यह है कि उन्होंने वहां किस तरह का अध्ययन किया।
इस बीच, मध्य प्रदेश में साशा की मौत पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया, जब प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रमुख के. के. मिश्रा ने दावा किया कि भारत लाए जाने से पहले मादा चीता के पेट का एक बड़ा ऑपरेशन हुआ था। मिश्रा ने सवाल उठाते हुए कहा, यह सिर्फ बेजुबान मादा चीता की लाश नहीं है, यह भाजपा सरकार की एक और बेशर्म घटना की लाश है। पेट का बड़ा ऑपरेशन होने के बावजूद इसे किस आधार पर भारत लाने के लिए चुना गया? यह जानवरों के नाम पर भी इंसानों के साथ घोटाला है।
इस बीच, केएनपी ने कहा कि शेष 19 चीते पूरी तरह से स्वस्थ और सक्रिय हैं और अपने नए आवासों में सामान्य रूप से शिकार कर रहे हैं। बाकी सात चीते नामीबिया से लाए गए, जिनमें से तीन नर और एक मादा को 17 सितंबर, 2022 को खुले जंगल में मुक्त आवाजाही के लिए छोड़ दिया गया। वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और सामान्य रूप से शिकार कर रहे हैं। सभी 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से लाए गए हैं। ये पूरी तरह से स्वस्थ और अलग-अलग बाड़ों में सक्रिय हैं।
–आईएएनएस
एसजीके/एएनएम