नई दिल्ली, 15 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय सोमवार को आंध्र प्रदेश सरकार की याचिका पर विचार करने पर सहमत हो गया, जिसमें राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अवुलापल्ली जलाशय को दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी) को रद्द कर दिया गया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ से कहा कि यह एक असाधारण मामला है, जहां एनजीटी द्वारा जलाशय की ईसी को रद्द कर दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उनकी पीठ इस मामले की सुनवाई 17 मई को करेगी, क्योंकि यह एक सार्वजनिक परियोजना है।
राज्य सरकार ने कहा कि वह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (दक्षिण क्षेत्र) द्वारा पारित 11 मई के फैसले के खिलाफ मौजूदा दीवानी अपील दायर करने के लिए विवश है, जिसमें चित्तूर में अवुलापल्ली बैलेंसिंग जलाशय के लिए ईसी प्राप्त करने और उसके आवेदन में कथित गलत बयानी के लिए सरकार को फटकार लगाई गई थी।
एनजीटी ने पाया कि जबकि परियोजना की अंतिम/प्रस्तावित अंतिम जल भंडारण क्षमता 3.5 टीएमसी थी, आंध्र प्रदेश ने जानबूझकर इसके लिए आवेदन किया और केवल 9,700 हेक्टेयर के कृषि योग्य कमांड क्षेत्र के साथ 2.5 टीएमसी की जल भंडारण क्षमता को अधिकृत करने वाली ईसी प्राप्त की।
अधिवक्ता महफूज नाजकी के माध्यम से दायर राज्य सरकार की याचिका में कहा गया है कि उक्त निष्कर्ष पूरी तरह से गलत है। यह किसी का मामला नहीं था कि 2.5 टीएमसी से अधिक भंडारण क्षमता का उपयोग एबीआर परियोजना के लिए किया जा रहा है, या कोई भी 9,700 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य कमान क्षेत्र से अधिक में निर्माण किया जा रहा है।
इस बात पर चर्चा करने का कोई अवसर नहीं था कि क्या आंध्र प्रदेश राज्य द्वारा किसी गलत बयानी का सहारा लिया गया था।
याचिका में तर्क दिया गया है कि ऐसा सवाल तभी उठता है, जब परियोजना प्रस्तावक, जो कि आंध्र प्रदेश राज्य है, वास्तव में 2.5 टीएमसी जल भंडारण क्षमता या 9,700 हेक्टेयर के कृषि योग्य कमांड क्षेत्र से आगे जाने के लिए कोई कदम उठाता है।
याचिका में कहा गया है, जब भी एबीआर परियोजना के किसी भी बाद के चरण को लागू किया जाएगा, राज्य उस संबंध में ईसी के लिए आवेदन करने के लिए कदम उठाएगा, जैसा कि इस तरह की परियोजनाओं को लागू करते समय एक आम प्रथा है।
–आईएएनएस
एसजीके