नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बायोसाइंसेज विभाग के रिसर्च छात्र सैयद अहमद रिजवी को इंडो-यूके रिसर्च प्रोजेक्ट मिला है। यह प्रोजेक्ट बर्मिघम विश्वविद्यालय और वारविक यूके विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से प्रदान किया है।
एक प्रतिष्ठित प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद (एनईआरसी) द्वारा अर्ली करियर पम्प-प्राइमिंग इनिशिएटिव के तहत फंडेड इंडो-यूके रिसर्च प्रोजेक्ट प्राप्त किया है। इस विशेष परियोजना को एंटीमाइक्रोबियल मैन्युफैक्चरिंग वेस्ट से पर्यावरण में भारत-यूके टैकलिंग एएमआर के आह्वान के तहत मंजूरी दी गई है।
इस अध्ययन में अहमद, बर्मिघम विश्वविद्यालय के डॉ. कनीज चौधरी, डॉ. चियारा बोरसेटो और डॉ. एम्मा ट्रैविस, यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक यूके के सहयोग से यूके के दो स्थानों से पानी के नमूने में पॉली-फ्लोरोआकाइल पदार्थ (पीएफएएस) और एंटीमाइक्रोबायोल्स कंसंट्रेशन को मापेंगे। पीएफएएस और एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में आने वाले पर्यावरणीय माइक्रोबियल समुदायों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध जीन (एआरजी) के सह-चयन की जांच करेंगे। इसके अलावा, यह अध्ययन बैक्टीरियल बायोफिल्म पर पीएफएएस जोखिम के प्रभाव का पता लगाएगा।
जामिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि अहमद इंडो-यूके संयुक्त सहयोगी अनुसंधान परियोजना में जेआरएफ हैं, जो प्रो. काजी मोहम्मद रिजवानुल हक, जेएमआई को स्वीकृत है। इस परियोजना में यूके और भारतीय विश्वविद्यालयों (बर्मिघम विश्वविद्यालय यूके, लीड्स यूके विश्वविद्यालय और पांच भारतीय विश्वविद्यालयों अर्थात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ और जेएमआई नई दिल्ली) के प्रतिनिधि माइक्रोबियल इकोसिस्टम पर फार्मास्युटिकल कचरे के रिलीज के प्रभाव की जांच करने के लिए शामिल हैं। इसके अलावा, यह अध्ययन इस बात का पता लगाएगा कि माइक्रोबियल आबादी में प्रतिरोध के लिए किस मात्रा तक एंटीमाइक्रोबायल वेस्ट का चयन किया जाता है।
सैयद अहमद रिजवी वर्तमान में माइक्रोबायोलॉजी रिसर्च लैब, बायोसाइंसेस विभाग, प्राकृतिक विज्ञान संकाय में काम कर रहे हैं। प्रोफेसर काजी मोहम्मद रिजवानुल हक, सह-पीआई, इंडो-यूके संयुक्त अनुसंधान परियोजना सेलेक्टर के तहत पीएचडी के लिए पंजीकृत हैं।
–आईएएनएस
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