मुंबई, 25 दिसम्बर (आईएएनएस)। देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित, बैंकिंग क्षेत्र की कभी चमकदार शख्सियत रहीं आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदा डी. कोचर का सफर अर्श से फर्श तक पहुंचने का रहा। गौरतलब है कि कोचर को उनके पति दीपक कोचर के साथ ऋण धोखाधड़ी मामले में शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया गया था।
सात साल पहले 3,250 करोड़ रुपये के ऋण धोखाधड़ी के मामले में कें्र दीय जांच ब्यूरो द्वारा कोचर दंपति के खिलाफ केस दर्ज किया था। इसमें वीडियोकॉन समूह भी शामिल था।
सीबीआई ने चंदा कोचर पर 2009-2011 के बीच उद्योगपति वेणुगोपाल एन. धूत के वीडियोकॉन समूह को अवैध रूप से ऋण स्वीकृत करने का आरोप लगाया है।
सीबीआई ने इससे पहले 2019 में वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड जैसी कंपनियों के अलावा कोचर दंपति और धूत पर केस दर्ज किया था।
सीबीआई ने दावा किया कि वीडियोकॉन समूह को 2012 में आईसीआईसीआई बैंक से 3,250 करोड़ रुपये का ऋण मिलने के बाद धूत ने कथित तौर पर 64 करोड़ रुपये न्यू पावर रिन्यूएबल्स में स्थानांतरित कर दिए, जहां दीपक कोचर की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया है कि कोचर के कारण आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप और अन्य को बैंक की नीतियों के खिलाफ ऋण स्वीकृत किया और बाद में इन्हें गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया, जिससे बैंक को नुकसान हुआ और कर्ज लेने वालों को लाभ पहुंचा। जांच के बाद सीबीआई ने इसे धोखाधड़ी करार दिया।
बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि आईसीआईसीआई बैंक ने चंदा के नेतृत्व के दौरान अधिकतम एनपीए की सूचना दी। आरटीआई के तहत पुणे के व्यवसायी प्रफुल्ल शारदा द्वारा मांगी गई जानकारी के मुताबिक 2021 तक यह लगभग 200,000 करोड़ रुपये हो गया था।
पिछले हफ्ते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद को सूचित किया कि आईसीआईसीआई बैंक ने 42,164 करोड़ रुपये के ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया है।
2018 की शुरुआत में चंदा छुट्टी पर चली गईं और फिर सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया, जिसे आईसीआईसीआई बैंक ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद कुछ अनियमितताएं सामने आईं।
शिकायतों और मीडिया खुलासों के बाद आईसीआईसीआई बैंक ने अप्रैल 2009 से मार्च 2018 तक चंदा के खिलाफ सभी आरोपों की जांच के लिए जून 2018 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की।
रिपोर्ट में कोचेर को आईसीआईसीआई बैंक की आचार संहिता का उल्लंघन करने और बैंक की जरूरतों से उचित तरीके से न निपटने की बात कही गई।
इस रिपोर्ट के बाद आईसीआईसीआई बैंक ने चंदा के खिलाफ कार्रवाई का फैसला किया और बैंक से उनकी सेवानिवृत्ति को बर्खास्तगी घोषित कर बैंक से मिलने वाले सभी लाभों से वंचित कर दिया।
इससे आहत चंदा ने न केवल न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण की रिपोर्ट पर सवाल उठाया बल्कि आईसीआईसीआई बैंक द्वारा बंबई उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में उनकी बर्खास्तगी को चुनौती दी, लेकिन उन्हें निराशा का सामना करना पड़ा।
इस फैसले के बाद जोधपुर में जन्मी और मुंबई में पढ़ी-लिखी भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की कभी चर्चित शख्सियत रहीं कोचर की प्रतिष्ठा पर गहरा धब्बा लग गया। वह 1984 में एक प्रशिक्षु के रूप में आईसीआईसीआई बैंक में शामिल हुईं और 2001 में कार्यकारी निदेशक बनीं।
चंदा ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए। उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
सीबीआई द्वारा चंदा की गिरफ्तारी उनके शानदार बैंकिंग करियर का त्रासदपूर्ण अंत है।
–आईएएनएस
सीबीटी