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तनाव बढ़ाने के बजाय चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए पहल करे अमेरिका

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June 20, 2023
in अंतरराष्ट्रीय
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तनाव बढ़ाने के बजाय चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए पहल करे अमेरिका
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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

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अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

–आईएएनएस

एसकेपी

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

–आईएएनएस

एसकेपी

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

–आईएएनएस

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वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

–आईएएनएस

एसकेपी

बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

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वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

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वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

–आईएएनएस

एसकेपी

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बीजिंग, 20 जून (आईएएनएस)। दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिकी सरकार ने चीन के खिलाफ तमाम कदम उठाए। जबकि कोरोनावायरस का स्रोत चीन में होने का आरोप अमेरिकी नेताओं ने बार-बार लगाया। जबकि शिनच्यांग में मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने भी अमेरिका चीन को घेरता रहा है।

वहीं हाल में जी-7 आदि मंचों से भी चीन के खिलाफ बयान जारी किए गए। इतना ही नहीं अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन चीन पहुंचे और रिश्तों को सुधारने की बात कही। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ-साथ चीनी विदेश मंत्री व अन्य नेताओं से मुलाकात की जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंध सुधारने के लिए काम करने की बात कही।

अगर उनकी इस यात्रा से पहले का माहौल देखें तो अमेरिका ने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए कोई सार्थक पहल नहीं की है। अमेरिका के उग्र तेवरों के उलट चीन का दावा है कि वह विश्व शांति का प्रवर्तक है। और एक जिम्मेदार देश के रूप में अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि यूक्रेन संकट को रोकने के लिए अमेरिका ने कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि चीन ने मध्यस्थ की भूमिका निभाने की इच्छा जताई है। शायद चीन ऐसा करने में सक्षम भी हो सकता है। क्योंकि उसने हाल में ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। जिससे अमेरिका के रवैये और भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इराक से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान में उसने युद्ध विराम और आम नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं किया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक तरह से युद्ध छेड़ने और हथियारों की बिक्री से चलती है।

चीन का आरोप है कि अमेरिका चीन के उत्पादों के अमेरिका में प्रवेश में तरह-तरह की बाधाएं पैदा करता है। साथ ही चीनी कंपनियों और तकनीकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। हालांकि आज के दौर में किसी एक देश पर इस तरह से प्रतिबंध लगाना और उसे अलग-थलग करना आसान नहीं है। खासकर जब कोई राष्ट्र विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकत हो और उसका प्रभाव वैश्विक हो। लेकिन अमेरिका व कुछ पश्चिमी राष्ट्र चीन द्वारा उठाए हर कदम को अपने लिए खतरा मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत चीन विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में लगा हुआ है।

अमेरिका की ओर से चीन को एक दुश्मन और कड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता है। उधर चीन का कहना है कि वह ऐसा नहीं मानता है। एंटनी ब्लिंकन की चीन यात्रा के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस बयान से चीन के रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।

शी के मुताबिक चीन अमेरिकी हितों का सम्मान करता है और अमेरिका को चुनौती नहीं देगा और कभी अमेरिका की जगह भी नहीं लेगा। लेकिन अमेरिका को चीन का सम्मान करना चाहिए और उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।

ऐसे में अमेरिका को जिम्मेदार रुख अपनाते हुए चीन व विश्व के साथ समन्वय कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। ताकि अनिश्चितता भरे इस वातावरण में स्थिरता और शांति स्थापित की जा सके।

(अनिल पांडेय, चाइना मीडिया ग्रुप, बीजिंग)

–आईएएनएस

एसकेपी

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