नई दिल्ली, 22 जुलाई (आईएएनएस)। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भाजपा कई क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत कर रही है जो एनडीए में शामिल होने के इच्छुक हैं और आने वाले दिनों में सकारात्मक परिणाम सामने आने की संभावना है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस को बताया कि अभी बातचीत बहुत शुरुआती चरण में है। इसके अलावा कुछ क्षेत्रीय दलों ने खुद ही एनडीए में शामिल होने के लिए भाजपा आलाकमान से संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि इनके बारे में पार्टी नेतृत्व ने राज्य इकाइयों से फीडबैक मांगा है और पार्टी के भीतर इस पर चर्चा के बाद अंतिम फैसला लिया जाएगा।
एक अन्य वरिष्ठ नेता, जो चुनाव अभियान के लिए पार्टी प्रभारियों में से हैं, ने दावा किया कि यह आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में पार्टियों की संख्या 50 तक पहुंच जाए।
देश में एनडीए के बैनर तले गठबंधन की राजनीति के नए युग की शुरुआत हुए लगभग 25 साल बीत चुके हैं।
एनडीए के 25 साल के सफर पूरे होने पर 18 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में दिल्ली के अशोक होटल में घटक दलों की अहम बैठक आयोजित की गई।
इस बैठक में शामिल हुए एनडीए के 39 घटक दलों ने सर्वसम्मति से 2024 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लड़ने और उन्हें तीसरी बार पीएम बनाने का प्रस्ताव पारित किया।
बैठक को लेकर भाजपा ने भी बयान जारी कर दावा किया कि इसमें एनडीए के 39 घटक दलों ने हिस्सा लिया।
हालाकि बैठक में 39 दलों ने भाग लिया, राज्यों में एनडीए सरकारों का समर्थन करने वाले दलों की संख्या को देखते हुए, सहयोगियों की कुल संख्या लगभग 42 होने का अनुमान है।
विपक्षी खेमे से डेढ़ गुना अधिक दलों के साथ गठबंधन करने के बावजूद, भाजपा अभी भी उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में अधिक दलों को एनडीए में जोड़ने के लिए अभियान चला रही है।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता दावा कर रहे हैं कि विपक्षी एकता के मद्देनजर भाजपा ने एनडीए की बैठक बुलाई है। हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव-राहुल गांधी (सपा-कांग्रेस) और अखिलेश-मायावती (सपा-बसपा) गठबंधन को “भारी अंतर” से हराकर अपनी ताकत साबित कर दी है।
भगवा पार्टी के नेताओं का दावा है कि विपक्षी गठबंधन से भाजपा की चुनावी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि पार्टी ने कई साल पहले ही हर चुनाव में 50 फीसदी वोट पाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था।
गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में भाजपा ने 50 फीसदी के करीब या उससे ज्यादा वोट पाने का रिकॉर्ड बनाया है।
भाजपा उन पार्टियों को भी एनडीए में जोड़ने की कोशिश कर रही है, जिनके पास कम संख्या में भी मतदाताओं का समर्थन है, ताकि मतदाताओं के इन छोटे समूहों को एकजुट किया जा सके और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त किए जा सकें ताकि संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने की विपक्ष की रणनीति को चुनौती दी जा सके।
उत्तर प्रदेश में भाजपा अपना दल (एस), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निषाद पार्टी के साथ मिलकर राज्य के सामाजिक-राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है। सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में महान दल भी बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकता है।
बिहार में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को साथ लेकर भाजपा सामाजिक न्याय के नीतीश-लालू समीकरण को ध्वस्त करने के लिए 50 फीसदी वोटों के जादुई आंकड़े तक पहुंचना चाहती है।
इसी तरह, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के समर्थन के बावजूद, भाजपा ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) से हाथ मिलाया है, जिसका राज्य के छोटे हिस्सों में जनाधार है और इसके अध्यक्ष रामदास अठावले को केंद्र में मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा, भगवा पार्टी ने महाराष्ट्र में प्रहार जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय समाज पक्ष और जन सुराज्य शक्ति जैसी पार्टियों के साथ भी गठबंधन किया है।
दरअसल, जिन राज्यों में पार्टी मजबूत है, वहां वह इन छोटे दलों के सहारे 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल कर लोकसभा चुनाव में सभी सीटें जीतना चाहती है।
वहीं आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में वह अपना खाता खोलकर अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। पार्टी पूर्वोत्तर के असम और त्रिपुरा में भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है, वहीं घटक दलों की मदद से विपक्षी दलों को दूसरे राज्यों में चुनाव जीतने से रोकना चाहती है।
यही वजह है कि भाजपा ने पिछले दिनों एनडीए गठबंधन छोड़ने वाले जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाह और ओम प्रकाश राजभर जैसे नेताओं को फिर से गठबंधन में शामिल कर लिया। इसने महाराष्ट्र में अपने कट्टर विरोधी अजित पवार को भी शामिल कर लिया, लगातार राजनीतिक बयानबाजी और अंदरूनी कलह के बावजूद एआईएडीएमके जैसी पार्टी को एकजुट रखा और यहां तक कि अब तक निष्क्रिय पड़े अकाली दल, तेदेपा और जद-यू के लिए भी अपने दरवाजे खुले रखे।
–आईएएनएस
एसजीके
नई दिल्ली, 22 जुलाई (आईएएनएस)। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भाजपा कई क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत कर रही है जो एनडीए में शामिल होने के इच्छुक हैं और आने वाले दिनों में सकारात्मक परिणाम सामने आने की संभावना है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस को बताया कि अभी बातचीत बहुत शुरुआती चरण में है। इसके अलावा कुछ क्षेत्रीय दलों ने खुद ही एनडीए में शामिल होने के लिए भाजपा आलाकमान से संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि इनके बारे में पार्टी नेतृत्व ने राज्य इकाइयों से फीडबैक मांगा है और पार्टी के भीतर इस पर चर्चा के बाद अंतिम फैसला लिया जाएगा।
एक अन्य वरिष्ठ नेता, जो चुनाव अभियान के लिए पार्टी प्रभारियों में से हैं, ने दावा किया कि यह आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में पार्टियों की संख्या 50 तक पहुंच जाए।
देश में एनडीए के बैनर तले गठबंधन की राजनीति के नए युग की शुरुआत हुए लगभग 25 साल बीत चुके हैं।
एनडीए के 25 साल के सफर पूरे होने पर 18 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में दिल्ली के अशोक होटल में घटक दलों की अहम बैठक आयोजित की गई।
इस बैठक में शामिल हुए एनडीए के 39 घटक दलों ने सर्वसम्मति से 2024 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लड़ने और उन्हें तीसरी बार पीएम बनाने का प्रस्ताव पारित किया।
बैठक को लेकर भाजपा ने भी बयान जारी कर दावा किया कि इसमें एनडीए के 39 घटक दलों ने हिस्सा लिया।
हालाकि बैठक में 39 दलों ने भाग लिया, राज्यों में एनडीए सरकारों का समर्थन करने वाले दलों की संख्या को देखते हुए, सहयोगियों की कुल संख्या लगभग 42 होने का अनुमान है।
विपक्षी खेमे से डेढ़ गुना अधिक दलों के साथ गठबंधन करने के बावजूद, भाजपा अभी भी उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में अधिक दलों को एनडीए में जोड़ने के लिए अभियान चला रही है।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता दावा कर रहे हैं कि विपक्षी एकता के मद्देनजर भाजपा ने एनडीए की बैठक बुलाई है। हालांकि, भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव-राहुल गांधी (सपा-कांग्रेस) और अखिलेश-मायावती (सपा-बसपा) गठबंधन को “भारी अंतर” से हराकर अपनी ताकत साबित कर दी है।
भगवा पार्टी के नेताओं का दावा है कि विपक्षी गठबंधन से भाजपा की चुनावी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि पार्टी ने कई साल पहले ही हर चुनाव में 50 फीसदी वोट पाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था।
गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में भाजपा ने 50 फीसदी के करीब या उससे ज्यादा वोट पाने का रिकॉर्ड बनाया है।
भाजपा उन पार्टियों को भी एनडीए में जोड़ने की कोशिश कर रही है, जिनके पास कम संख्या में भी मतदाताओं का समर्थन है, ताकि मतदाताओं के इन छोटे समूहों को एकजुट किया जा सके और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त किए जा सकें ताकि संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने की विपक्ष की रणनीति को चुनौती दी जा सके।
उत्तर प्रदेश में भाजपा अपना दल (एस), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निषाद पार्टी के साथ मिलकर राज्य के सामाजिक-राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है। सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में महान दल भी बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकता है।
बिहार में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलजेडी) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को साथ लेकर भाजपा सामाजिक न्याय के नीतीश-लालू समीकरण को ध्वस्त करने के लिए 50 फीसदी वोटों के जादुई आंकड़े तक पहुंचना चाहती है।
इसी तरह, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के समर्थन के बावजूद, भाजपा ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) से हाथ मिलाया है, जिसका राज्य के छोटे हिस्सों में जनाधार है और इसके अध्यक्ष रामदास अठावले को केंद्र में मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा, भगवा पार्टी ने महाराष्ट्र में प्रहार जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय समाज पक्ष और जन सुराज्य शक्ति जैसी पार्टियों के साथ भी गठबंधन किया है।
दरअसल, जिन राज्यों में पार्टी मजबूत है, वहां वह इन छोटे दलों के सहारे 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल कर लोकसभा चुनाव में सभी सीटें जीतना चाहती है।
वहीं आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में वह अपना खाता खोलकर अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। पार्टी पूर्वोत्तर के असम और त्रिपुरा में भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है, वहीं घटक दलों की मदद से विपक्षी दलों को दूसरे राज्यों में चुनाव जीतने से रोकना चाहती है।
यही वजह है कि भाजपा ने पिछले दिनों एनडीए गठबंधन छोड़ने वाले जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाह और ओम प्रकाश राजभर जैसे नेताओं को फिर से गठबंधन में शामिल कर लिया। इसने महाराष्ट्र में अपने कट्टर विरोधी अजित पवार को भी शामिल कर लिया, लगातार राजनीतिक बयानबाजी और अंदरूनी कलह के बावजूद एआईएडीएमके जैसी पार्टी को एकजुट रखा और यहां तक कि अब तक निष्क्रिय पड़े अकाली दल, तेदेपा और जद-यू के लिए भी अपने दरवाजे खुले रखे।
–आईएएनएस
एसजीके