भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम का कालखंड एक ऐसा दौर है जिसकी लौ निरंतर प्रज्वलित होती रहेगी और जिस पर लिखी कहानी हमेशा अमिट रहेगी। मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए हमारे देश के कई सपूतों ने अपने प्राण की बाजी लगा दी और वतन की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। भारत अपने ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को भला कैसे भूल सकता है। आजादी के अमृत महोत्सव में हम अपने ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों को याद करते हैं जिनका योगदान आज के दौर में कहीं अधिक प्रासंगिक है और जो हमें कर्तव्य पथ पर डटे रहने के लिए करते हैं प्रेरित…
आजादी का जुनून तोड़ने को कोल्हू में जोते गए थे वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई
जन्म : 5 सितंबर 1872, मृत्यु : 18 नवंबर 1936
हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी योगदान देने वाले वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बाल गंगाधर तिलक से राजनीति का पाठ सीखा था। उनका जन्म 5 सितंबर 1872 को तमिलनाडु में हुआ था। ‘वी.ओ. सी’ और ‘कप्पलोट्टिय तमिलन’ के नाम से जाने जाने वाले पिल्लई ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद राजनीति में प्रवेश किया था। बाल गंगाधर तिलक तथा लाला लाजपत राय द्वारा शुरू किये गए स्वदेशी आंदोलन से 1905 के अंत में ही जुड़ गए। वह रामकृष्ण मिशन की ओर भी आकर्षित हुए। चिदंबरम पिल्लई ने ‘स्वदेशी प्रचार सभा’ बनाकर पूरे क्षेत्र में इसका प्रसार करना शुरू
कर दिया। उन्होंने बुनकर और कारीगरों के लिए मद्रास एग्रो इंडियन सोसाइटी लिमिटेड स्थापित किया। इतना ही नहीं उन्होंने ‘पैसा फंड’ नाम से एक स्वदेशी बैंक और स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी भी शुरू की, जिससे अंग्रेजों को काफी नुकसान हो रहा था। बाद में वह सुब्रमण्यम भारती के संपर्क में आए। ऐसा माना जाता है कि महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह (1917) से पहले ही चिदंबरम पिल्लई
ने तमिलनाडु में मजदूर वर्ग का मुद्दा उठाया था। चिदंबरम पिल्लई ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर 9 मार्च, 1908 की सुबह बिपिन चंद्र पाल की जेल से रिहाई का जश्न मनाने और स्वराज का झंडा फहराने के लिये एक विशाल जुलूस निकालने का संकल्प लिया था। पिल्लई की चुनौतियों से परेशान होकर अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया और उन पर काफी जुल्म किया गया। उनसे खदान में काम कराया गया और कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें तेल के कोल्हू में बैल की जगह जोत दिया गया। लेखन में भी पिल्लई की गहरी रूचि रही। उन्होंने मेयाराम (1914), मेयारिवु (1915), एंथोलॉजी (1915), आत्मकथा (1946) सहित कई कृतियों की रचना की। 18 नवंबर, 1936 को चिदंबरम पिल्लई का निधन हो गया। 5 सितंबर 2021 को उनकी जन्म जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “उन्होंने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख योगदान दिया। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की भी परिकल्पना की थी और इसके लिए बंदरगाहों और जहाजरानी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रयास किए। वह हमारे लिए विशेष प्रेरणा के स्रोत हैं।”