श्रीमति बिंदु सुनील
भोपाल,देशबन्धु. बाल्यावस्था मनुष्य के व्यक्तित्व , उसकी सफलता यहाँ तक की उसके सम्पूर्ण जीवन की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिकानिभाती है । बाल्यावस्था याने की गर्भ से लेकर 6 वर्ष तक कीअवस्था। इस अवस्था में शिशु को जिस तरह का परिवेश , देखभाल, व्यवहार माँ के गर्भ में व जन्म लेने के बाद मिलता हैवही उसके आने वाले जीवन की आधारशीला रखता है। इसमें भीअत्यन्त महत्वपूर्ण हैं गर्भ के नौ माह व शिशुके जन्म के बाद के 2 वर्ष , यानी कुल 1000 दिवस। इन 1000 दिवसों में शिशु कोमात्र शारीरिक वृद्धी के लिए पोषण की ही आवश्यकता नही होती ,बल्कि उसे सीखने, समझने, पहचाननें आदि के लिएअवसरों की भी आवश्यकता होती है जो उसे उसके माता-पिता , परिवार, परिवेश व समाज दे सकते हैं। इसे हम शिशु की प्रथमपढ़ाई कह सकते हैं, जो घर की पाठशाला में खेल-खेल में बढ़े हीसहज वातावरण में दी जाती है।अभिमन्यू के द्वारा माँ के गर्भ में चक्रव्यूह की जानकारी प्राप्त करना इस बात का पुख्ता प्रमाण हमसबके सामने है।
घर में बच्चों को अच्छे पोषण के साथ- साथ खेल-खेल में सीखाने -पढ़ाने का काम वर्षों से हमारी परम्परा रही है। लेकिनआज के समय में जब की संयुक्त परिवार खत्म होते जा रहे हैं, माता-पिता दोनो आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं , एैसे मेंजीवन की बुनियादी बातें खो रही हैं, और इसका असर हमारीआने वाली पीढ़ी पर साफ नजर आ रहा है।
आंगनवाड़ी केन्द्रों में गर्भवती महिलाओं ,शिशुवती माताओंऔर 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों को पोषण आहार के साथ- साथ 3 वर्ष से 6 वर्ष के बच्चों को अनौपचारिक शाला पूर्व शिक्षादी जाकर बच्चों को शाला की औपचारिक शिक्षा के लिए तैयारकरने का काम किया जा रहा है। गर्भवती व शिशुवती माताओं कोभी उनके व उनके शिशु के अच्छे स्वास्थ्य व सम्पूर्ण विकास कीजानकारी दी जा रही है।
केन्द्र सरकार के कार्यक्रम “पोषण भी पढ़ाई भी” के माध्यमसे अधिक व्यवस्थित तरीके से बच्चे के 1000 दिवसों, 3 वर्ष से6वर्ष की आयु, विकास के चरणों, प्रारंभिक वर्षों में ही विकासको बाधित करने वाले संकेतों की पहचान , माता-पिता कोजानकारी के साथ ही शीघ्रता से उपचार की व्यवस्था को प्रभावीतरीके से लागू किये जाने का प्रावधान है।
पोषण भी-पढ़ाई भी कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीतिमें 3 वर्ष से छोटे बच्चों की देखभाल के साथ ही बच्चों मेंदिव्यांगता की पहचान के संबंध में प्रथम बार गतिविधियां चिन्हितकी गयीं हैं। इस कार्यक्रम में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं शाला पूर्वशिक्षा की नई गतिविधियों का संचालन कर सकेंगी, 3 वर्ष सेछोटे बच्चों के पालकों को बाल विकास के संबंध में जागरूक करसकेंगी । साथ ही छोटे बच्चों में दिव्यांगता की पहचान करसकेंगी, जो बच्चों के विकास से जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू है, एकसंवेदनशील मुद्दा है।
कभी-कभी, किसी बच्चे को विशेष योग्यताएँ विकसित होने मेंअपेक्षा से अधिक समय लग सकता है। उन्हें चलने या बोलने मेंअधिक समय लग सकता है और उसे सहायता की आवश्यकताहो सकती है। अगर समय पर इसे पहचान कर उचित देखभाल नकी जाए, तो बच्चे की विकास यात्रा बाधित हो सकती है औरभविष्य में विकलांगता में बदल सकती है।
संभावित विकलांगता के लक्षण हमेशा आसानी से दिखाईनहीं दे सकते हैं। किसी बच्चे में दृश्य हानि, श्रवण हानि, डाउनसिंड्रोम या सेरेब्रल पाल्सी आसानी से दिखाई दे सकती है। इसकेविपरीत, बोलने में देरी जैसी सीखने की अक्षमताएं, जिससेसाक्षरता में देरी होती है, आसानी से दिखाई नहीं दे सकती हैं।आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को विलंबित विकास वाले एवं दिव्यांगबच्चो की स्क्रीनिंग के इंडीकेटर्स प्रशिक्षण पुस्तकों के माध्यम सेउपलब्ध कराये गये हैं। प्रशिक्षण के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं, Developmental Delays वाले बच्चों को पहचान सकेंगी। इससेउनके उपचार को प्रारंभिक अवस्था में ही आरंभ किया जा सकेगा।साथ ही आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा गृह भेंट के समय, अभिभावकों के साथ स्क्रीनिंग के इंडीकेटर्स वाली गतिविधियों कोकिया जाएगा, ताकि अभिभावक को भी Developmental Delays वाले बच्चों की पहचान हो सके।
कार्यकर्ताओं द्वारा गृह भेंट के दौरान समय पर और नियमितजांच से देरी या संभावित विकलांगता के बारे में तुरंत पता चलसकता है। यदि शीघ्र पता लगाया जाए, तो कुछ प्रमुखजानकारियों के माध्यम से लगभग एक-तिहाई हानि को बिगड़ने सेरोका जा सकता है। भेंगापन, दृश्य दोष, जन्मजात मोतियाबिंदऔर श्रवण हानि जैसी दृश्य हानि को भी समय पर जांच, रेफरलऔर चिकित्सा हस्तक्षेप से गंभीर होने से रोका जा सकता है।
सिलसिलेवार चली प्रशिक्षण प्रक्रिया में राष्ट्रीय जन सहयोगएवं बाल विकास संस्थान (निपसिड), इंदौर एवं दिल्ली केविषय-विशेषज्ञों द्वारा द्वारा प्रदेश के 2,758 परियोजनाअधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों को राज्यस्तरीय मास्टर ट्रेनर्स केरूप में तैयार किया गया था। अब यही मास्टर ट्रेनर्स प्रदेश कीसमस्त 95,253 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं।इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत अब तक लगभग 93,454 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है। अन्यराज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश कार्यक्रम के क्रियान्वयन में आगेचल रहा है।
इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बच्चों के विकास सेजुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षणकार्यक्रम की निगरानी निपसिड, जिला कलेक्टर सहितराज्यस्तरीय अधिकारियों द्वारा की जा रही है। मार्च 2025 में दोचरणों में संचालित प्रशिक्षण में कार्यकर्ताओं की उपस्थितिऑनलाइन पंजीयन के माध्यम से ली गई है, जिससे उपस्थिति केवास्तविक आंकडे प्राप्त हुए हैं। संचालनालय के अधिकारियोंद्वारा जिलों का भ्रमण कर, आयोजित हो रहे प्रशिक्षणों काअवलोकन किया गया । समस्त प्रशिक्षणार्थियों का प्रशिक्षण पूर्वमूल्यांकन एवं प्रशिक्षण पश्चात मूल्यांकन किया गया ।
अच्छा पोषण, अच्छा सीखने को बढ़ावा देने में, सहायक होताहै। आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से , “पोषण भी-पढ़ाई भी” प्रदानकरने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग प्रतिबद्ध है, यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारे नौनिहालों के अच्छे विकास के लिए सकारात्मक, स्वच्छ वातावरण के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक चरण में सीखने और बढ़ने के अवसर और शासनस्तर पर और अपनों के द्वारा देखभाल में कहीं भी कभी भी कमी नही होगी, आइए, एक साथ मिलकर हम अपनी भावी पीढ़ियों को उनके स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों का समर्थन करके सशक्त बनाएं ।