तेंदूखेड़ा, देशबंधु. संत शिरोमणि आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज की परम शिष्या एवं आचार्य भगवान श्री समयसागर जी महाराज की आज्ञा से 105 आर्यिका सिद्धांतमति माताजी, 105 आर्यिका पुनीत मति माताजी, 105 आर्यिका विनय मति माताजी का पावन वर्षायोग तेंदूखेड़ा जैन मंदिर प्रांगण में धर्म प्रभावना के साथ चल रहा है।
प्रतिदिन प्रातः काल जिनेंद्र देव की पूजन अर्चन के साथ-साथ प्राचीन आचार्य प्रणीत ग्रंथों स्वाध्याय भी अनवरत रुप से चल रहा है जिसके माध्यम से श्रावक श्राविकायें ज्ञान की गंगा में अवगाहन करते हुए लाभ उठा रहे हैं। प्रतिदिन प्रात 8:30 बजे से राजर्षि अमोघ वर्ष द्वारा रचित प्रश्नोत्तर रत्न मालिका का स्वाध्याय माता जी के मुखारविंद से चल रहा है।
स्वाध्याय के अंतर्गत माताजी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मरण क्या है? इसका उत्तर देते हुए प्रश्नउत्तर मलिक में बताया गया कि केवल प्राणों का शरीर से निकल जाना ही मरण नहीं है बल्कि हमारे अंदर जो अज्ञानता है, मूर्खता है, वह भी मरण के ही समान है।
सबसे मूल्यवान क्या है? जो आवश्यकता जरूरत के समय दिया जाता है वह सबसे मूल्यवान है जैसे एक व्यक्ति जो प्यास से व्याकुल है उसको उस समय पानी पिला देना उसके लिए सबसे मूल्यवान वस्तु है। बीमार को औषधि देना सबसे मूल्यवान है ।
मरण समय तक शल्य के समान क्या चुभता रहता है ? सज्जन पुरुषों के द्वारा जो कार्य नहीं किया जाना चाहिए यदि वह कार्य किसी कारणवश उन्हें करना पड़े तो वह जीवन भर शल्य के समान चुभता रहता है।
कौन सब के प्रिय होते हैं? सत्य पर चलने वाले और विनयशील व्यक्ति सबके प्रिय हो जाते हैं । पुरुषार्थ कहां करना चाहिए? विद्याधन एवं औषधि दान में पुरुषार्थ करना चाहिए।
“स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार” अभियान के अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र शाहपुर में आयोजित शिविर
दुर्जनों, परस्त्रियों और दूसरे के धन से हमेशा दूरी बनाए रखना चाहिए । यह संसार असार है इस बात का हमेशा चिंतन करते रहना चाहिए। प्राण चले जाने पर भी अपने आपको किसको नहीं सौंपना चाहिए? मूर्ख व्यक्ति, अभिमानी, और कृतघ्न व्यक्ति को प्राणकंठगत होने पर भी नहीं सौपना चाहिए।