बरसाना. विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली का रंग आज उत्तर प्रदेश के बरसाना में पूरे उमंग और उत्साह के साथ बिखरा. राधारानी की नगरी में हजारों श्रद्धालु इस अद्भुत परंपरा का साक्षी बनने के लिए देश-विदेश से पहुंचे. यहां राधा बनीं बरसाना की हुरियारिनों (गोपियों) ने नंदगांव से आए कृष्ण रूपी हुरियारों पर जमकर लाठियां बरसाईं और इन हुरियारों ने भी ढाल से खुद को बचाने की कोशिश की. अबीर-गुलाल की रंगीन फुहारों, हंसी-ठिठोली, पारंपरिक लोकगीतों और भक्ति से सराबोर इस आयोजन का हर कोई जमकर आनंद लेता नजर आया.
यह परंपरा हजारों वर्षों से निभाई जा रही है. नंदगांव के हुरियारे पीली पोखर पहुंचते हैं, जहां उनका स्वागत ठंडाई और भांग से किया जाता है. यहां से वे रंगीली गली जाते हैं, जहां बरसाना की गोपियां पारंपरिक होली के गीत गाकर उन्हें रिझाने की कोशिश करती हैं. इसके बाद हंसी-मजाक, नृत्य-संगीत के बीच लट्ठमार होली का मुख्य आयोजन शुरू होता है.
इस दौरान नंदगांव से आए हुरियारे ढाल लेकर आते हैं और बरसाना की हुरियारिनें उन पर प्रेम और शरारत के साथ लाठियां बरसाती हैं. यह आयोजन राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम को समर्पित होता है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालु हर साल बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं.
बरसाना की इस अनोखी लट्ठमार होली को देखने के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु पहुंचे. बुजुर्ग, युवा और बच्चे सभी ने इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनकर ब्रज की संस्कृति और भक्ति का आनंद उठाया. श्रद्धालुओं का मानना है कि यह सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि राधा-कृष्ण के प्रेम की अनूठी झलक है. मान्यता है कि इस अलौकिक होली को देखने के लिए स्वयं देवता भी ब्रज में आते हैं.
ब्रज में होली महज एक दिन का त्योहार नहीं, बल्कि पूरे 40 दिन तक इसका उल्लास बना रहता है. जब तक बरसाना की हुरियारिनें नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों से होली नहीं खेलतीं, तब तक इस उत्सव की पूर्णता नहीं मानी जाती. रंगों और भक्ति की इस अद्भुत परंपरा ने एक बार फिर श्रद्धालुओं को प्रेम और आनंद से सराबोर कर दिया.